फूलन देवी : भारत की वो महिला जिसके नाम से कांप उठते थे बड़े-बड़े लोग, फूलन देवी का अपहरण करने वाला डकैत बना गया था साधु

 

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

लखनऊ। आज (सोमवार) यानि 25 जुलाई को चंबल की रानी फूलन देवी की बरसी है। इस मौके पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट करके उन्हें श्रद्धाजंलि दी। फूलन देवी भारत में दस्यु सुंदरी के नाम से जानी जाती हैं।

फूलन देवी के जीवन की शुरुआत होती है यूपी के जालौन से। 10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के घूरा का पुरवा में फूलन का जन्म हुआ था। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में जन्मी फूलन देवी काफी गरीब परिवार से थीं।

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उस वक्त उसके साथ उसके दस हजार से ज्यादा समर्थक थे। सरकार ने उसे यह आश्वासन दिया था कि उसे मृत्युदंड नहीं दिया जायेगा। 1994 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया था।

1983 में फूलन ने कई शर्तों के साथ मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया था। 1993 में फूलन जेल से बाहर आईं। 1996 में फूलन देवी ने राजनीति में प्रवेश किया और वह सपा की टिकट पर भदोही से सांसद चुनीं गयीं। दलित समुदाय उनका समर्थक था।

वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद भी बनीं। 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की दिल्ली में उनके घर के पास हत्या कर दी थी।

2011 में स्पेशल जज (डकैत प्रभावित क्षेत्र) में राम सिंह, भीखा, पोसा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और श्यामबाबू के खिलाफ आरोप तय होने के बाद ट्रायल शुरू हुआ। राम सिंह की जेल में मौत हो गई. फिलहाल पोसा ही जेल में है।

80 के दशक में चंबल के बिहड़ों में ‘बैंडिट क्वीन’ फूलन देवी के नाम का इतना खौफ था कि बड़े-बड़े लोगों की रूह कांपने लगती थी। बोला जाता था कि वह बहुत सख्त दिल वाली थी। हालांकि इसके पीछे बहुत बड़ी वजह थी।

जानकारों की मानें तो फूलन को परिस्थिति ने इतना कठोर बना दिया कि उन्होंने बहमई में सामूहिक हत्याकांड को अंजाम दिया। फूलन ने एक साथ कतार में खड़ा कर 22 ठाकुरों का क़त्ल कर दिया तथा उन्हें इसका जरा भी अफसोस नहीं हुआ।

चंबल के बीहड़ों से संसद पहुँचने वाली फूलन देवी पर ब्रिटेन में आउटलॉ नाम की एक पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसमें उनके जीवन के कई पहलुओं पर बातचीत की गई है।

फूलन देवी को प्राप्त हुई जेल की सजा के बारे में पढ़ने के लेखक रॉय मॉक्सहैम ने 1992 में उनसे पत्राचार आरम्भ किया। जब फूलन देवी ने उनकी चिट्ठी का जवाब दिया तो रॉय मॉक्सहैम भारत आए तथा उन्हें फूलन देवी को करीब से जानने का अवसर प्राप्त हुआ।

वहीं, करीब एक महीने पहले चंबल के इलाके में डकैत छिद्दा सिंह की एक समय में तूती बोलती थी। इसके नाम से लोग कांपते थे। छिद्दा सिंह उस इलाके के कुख्यात लालाराम के लिए अपहरण उद्योग भी चलाता था।

छिद्दा सिंह का नाम 1981 में बेहमई कांड से पहले फूलन देवी का अपहरण में भी आया था। इसके ऊपर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित था। भाई ने कागजों पर छिद्दा सिंह को मार दिया है। मगर परिवार के दावों पर पुलिस को यकीन नहीं था। 24 साल बाद साधु बनकर रह रहे छिद्दा सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।

दरअसल, चंबल में जब डकैतों के खिलाफ अभियान चल रहा था, तब छिद्दा सिंह वहां से भाग निकला था। वह सतना में जाकर रहने लगा था। यह वह साधु बन गया था। सतना में वह बृजमोहन दास महाराज के नाम से रह रहा था। छिद्दा सिंह यहां भगवद् आश्रम में रहता था।

उसकी उम्र 69 साल हो गई है। छिद्दा सिंह अविवाहित है। अब उसकी तबीयत भी खराब रहती है। तबीयत खराब होने की वजह से उसे घर की याद आ रही थी। उसकी हालत ऐसी हो गई है कि वह सही से चल भी नहीं पा रहा है।

अपने एक सहयोगी के साथ छिद्दा सिंह बोलेरो गाड़ी से यूपी स्थित घर भसोन पहुंचा था। इस दौरान गांव से ही किसी ने पुलिस को सूचना दे दी। सूचना मिलते ही पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी छिद्दा सिंह सही से चल भी नहीं पा रहा था। इसके बाद उसे अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया। तबीयत में सुधार के बाद रविवार को उसे गिरफ्तार किया गया।

 


बताया जाता है कि छिद्दा सिंह 20 साल की उम्र में अपने घर से फरार हो गया था। वह लालाराम गिरोह ज्वाइन कर लिया था। लालाराम के साथ ही चंबल में अपहरण करने का काम करता था। साथ ही फिरौती के रूप में मोटी रकम वसूलता था। उसके खिलाफ कुल 24 केस दर्ज है। 2015 में पुलिस ने आरोपी छिद्दा सिंह के खिलाफ 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था।

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