इंद्रेश कुमार बोले- आज मुंशीजी की आत्मा प्रसन्न जरूर होगी,अंग्रेजों को खटकते रहे, लेकिन हार नहीं माने पुश्तैनी मकान में तिरंगा फहराया गया

 

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ


वाराणसी। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर रविवार को वाराणसी के लमही गांव के उनके पुश्तैनी मकान में तिरंगा फहराया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद को अपने अंतिम समय में यह कसक जरूर थी कि काश देश आजाद हो जाता तो वह घर पर तिरंगा फहरा पाते।

रिश्ते-नाते से भरा उनका लमही गांव आज भी वैसे ही है, जैसे वह साल 1936 में छोड़ गए थे। मुंशी प्रेमचंद ने देश के लिए अंतिम सांस ली। वह देश के लिए लिखते रहे। अंग्रेजों की आंख में खटकते रहे, लेकिन कभी हार नहीं माने। उनका सपना अपने तिरंगे को अपने घर पर सिर्फ फहराने का ही नहीं बल्कि उसको सलामी देने का था।

आज मुंशीजी की आत्मा प्रसन्न जरूर होगी
इंद्रेश कुमार ने कहा कि आज मुंशीजी की आत्मा जरूर प्रसन्न होगी कि उनके गांव के लोग उनके जन्मदिन पर तिरंगा फहरा रहे हैं। मुंशीजी के योगदान को ये दुनिया कभी भुला नहीं सकती। उनकी महान कृतियों को देशवासी अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए हमेशा पढ़ते रहेंगे।

पंच परमेश्वर से न्याय, ईदगाह से गरीबी का दर्द, पूस की रात से किसान की चिंता, मंत्र से अमीरी और गरीबी का फर्क, कफन से नशे की आदत जैसे सामाजिक मुद्दों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना जगाने वाले मुंशीजी दुनिया के साहित्यकारों में सबसे ऊपर खड़े हैं। उनकी अमर कृतियों के चरित्र आज भी लमही गांव में दिख जाते हैं। लमही गांव को राष्ट्रभक्ति के साहित्य की प्रयोगशाला बनानी चाहिए।


लमही आजादी की लड़ाई की गवाही देता रहेगा
विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के लिए मुंशीजी का गांव लमही सदैव गवाही देता रहेगा। हम मुंशीजी के प्रति कृतज्ञ हैं कि उन्होंने सामाजिक चेतना और मानवीय संवेदना को उस समय विकसित किया, जब अंग्रेजी हुकूमत का दौर था। अंग्रेजों की कड़ी निगाह तब लमही पर थी कि कहीं मुंशीजी का गांव बागी न बन जाए और तिरंगा न फहरा दे।

 
उधर, इससे पहले मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिन पर लमही स्थित सुभाष भवन से उनके पुश्तैनी मकान तक बैंड-बाजा के साथ तिरंगा यात्रा निकाली गई। भारत माता की जय, वंदे मातरम, मुंशी प्रेमचंद अमर रहें जैसे नारों की गूंज के बीच इंद्रेश कुमार ने तिरंगा यात्रा का नेतृत्व किया।


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