टूट की कगार पर शिवसेना :  बीते कल की घटनाओं ने तय किया महाराष्ट्र का सियासी भविष्य , बागी विधायकों की कुल संख्या 41 तक पहुंची 

Shiv Sena on the verge of collapse: Yesterday's events decided the political future of Maharashtra, the total number of rebel MLAs reached 41

जनता के नाम एक भावनात्मक संदेश जारी कर सीएम उद्धव ठाकरे अब अपने सरकारी आवास यानी वर्षा बंगले से अपना सारा सामान लपेटकर मातोश्री पहुंच चुके हैं। महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार का जाना तय माना जा रहा है।

मुमकिन है कि आज तस्वीर साफ हो जाएगी, क्योंकि बीते कल की घटनाओं ने महाराष्ट्र के भविष्य का खाका खींच दिया है। 
 

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ 


मुंबई। उद्धव सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद अब शिवसेना टूट की कगार पर खड़ी है। जनता के नाम एक भावनात्मक संदेश जारी कर सीएम उद्धव ठाकरे अब अपने सरकारी आवास यानी वर्षा बंगले से अपना सारा सामान लपेटकर मातोश्री पहुंच चुके हैं। महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार का जाना तय माना जा रहा है। मुमकिन है कि आज तस्वीर साफ हो जाएगी, क्योंकि बीते कल की घटनाओं ने महाराष्ट्र के भविष्य का खाका खींच दिया है। 


इस बीच यह जानकारी सामने आ रही है कि विधायकों की तरह ही शिवसेना के 19 में से करीब 8-9 सांसद भी उद्धव का दामन छोड़ सकते हैं। हालांकि, दलबदल विरोधी कानून की वजह से शिवसेना में रहना उनकी मजबूरी होगी। पिछले 12 घंटे में शिवसेना के पांच और दो निर्दलीय विधायक गुवाहाटी पहुंचे। इनमें गुलाबराव पाटील, योगेश कदम, सदा सरवंकर, योगेश पवार और मंगेश कुंडालकर शामिल हैं। बाकी दो विधायक मंजुला गावित और चंद्रकांत पाटिल निर्दलीय हैं।

बागी विधायकों की कुल संख्या 41 तक पहुंची 
सदा , योगेश और मंगेश गुरुवार सुबह गुवाहाटी की रेडिसन ब्लू होटल पहुंचे। इसके साथ एकनाथ शिंदे की ताकत बढ़ती जा रही है। शिवसेना के बागी विधायकों की कुल संख्या 41 तक पहुंच गई। बाकी 7 निर्दलीय विधायक हैं। अब, एकनाथ के पास कुल 48 विधायकों के समर्थन होने का दावा किया जा रहा है।

सीएम उद्धव के करीब रहे एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि इनमें से ज्यादातर सांसद कोंकण, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र से हैं। इनमें से वाशिम की शिवसेना सांसद भावना गवली का नाम सबसे प्रमुख बताया जा रहा है। उन्होंने एकनाथ शिंदे के समर्थन में खत लिखकर उद्धव से बागी विधायकों की मांग पर विचार करने और इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई ना करने की अपील की है।

सूत्रों के मुताबिक, ये सत्ता परिवर्तन का इंतजार कर रहे हैं और शिंदे के हाथ में शिवसेना की पूरी कमान आते ही ये उद्धव से अलग खड़े हो जाएंगे। इनके अलावा कुछ अन्य नाम हैं जो आज सामने आ सकते हैं। एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे, ठाणे लोकसभा सांसद राजन विचारे और नागपुर की रामटेक सीट से सांसद कृपाल तुमाने भी पार्टी से नाराज हैं।

 
सांसद भावना गवली ने बागियों पर कार्रवाई नहीं करने को कहा
शिवसेना सांसद भावना गवली ने अपने पत्र में लिखा है, 'हिंदुत्व के पक्ष में बागी विधायकों की मांग पर विचार करना चाहिए।' उन्होंने CM से यह भी अपील की है कि वह बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई न करें। हालांकि, उद्धव समर्थित नेताओं का कहना है कि भावना के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच चल रही है। उन्हें ED की तरफ से तीन बार समन भेजा जा चुका है। गवली के खिलाफ महिला प्रतिष्ठान ट्रस्ट में मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच चल रही है। इस ट्रस्ट में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला काफी पुराना है।

 
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से नाराज हैं ये सांसद
कुछ अन्य में ठाणे से सांसद और एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे का नाम भी शामिल है। इनके साथ मराठवाड़ा के भी कुछ सांसद उद्धव के फैसलों से नाराज हैं। उनका कहना है कि लोकसभा में 19 सांसदों के साथ मजबूत स्थिति में खड़े होने के बावजूद उद्धव सिर्फ मुंबई तक सीमित रहे हैं और कई बार कहने के बावजूद लगातार उनसे जुड़े कार्यकताओं की उपेक्षा पार्टी में की जा रही है।

शिवसेना से नहीं उद्धव से अलग होंगे ये सांसद
दल-बदल कानून एक विरोधी कानून है, जो विधायकों या सांसदों को पार्टी बदलने से रोकता है। दरअसल, यदि कोई विधायक चुनाव होने से पहले दल बदल लेता है तो कोई परेशानी नहीं है, लेकिन यदि वह किसी एक पार्टी से जीतने के बाद ऐसा करता है तो उसे पहले लोकसभा से इस्तीफा देना होगा और उसकी सीट पर फिर से चुनाव कराए जाएंगे।

 
इस नियम के चलते नहीं होगी चुनाव की जरूरत!
इस कानून में एक प्रावधान भी है, जिसके तहत पार्टी के 2/3 सांसद एक साथ पार्टी को छोड़ते हैं तो उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत नहीं होगी और ना ही उनकी सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे और इस दौरान वह जिस भी पार्टी को समर्थन देंगे, उसकी सरकार बिना किसी परेशानी के सत्ता में आ जाएगी। हालांकि, सांसदों की स्थिति से महाराष्ट्र विधानसभा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

सांसदों के पाला बदलने से राष्ट्रपति चुनाव पर पड़ेगा असर
राष्ट्रपति चुनाव 2022 में प्रत्येक सांसद के मत का मूल्य 700 रह गया है, जिसका कारण जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का नहीं होना है। ऐसे स्थिति में अगर शिंदे गुट के सांसद ज्यादा होते हैं और वे शिवसेना के असली उत्तराधिकारी बन जाते हैं तो इसका नुकसान विपक्ष को उठाना पड़ सकता है। 


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