राठ (सु.) सीट पर किंग नहीं किंग मेकर हैं लोधी मतदाता , लेकिन अब पिछले दो चुनाव से ‘किंग’ नहीं बन पा रहे हैं

Lodhi voters are king maker not king on Rath (S.) seat

आजादी के बाद राठ सीट पर 1952 में हुये पहले चुनाव में कांग्रेस के श्रीपत सहाय ने जीत दर्ज करायी थी।

जीत का सिलसिला जारी रखते हुये 1957 और 1962 में कांग्रेस के डूगर सिंह ने इस सीट पर कब्जा बरकरार रखा।

वर्ष 1967 में भारतीय जनसंघ के राम सिंह राजपूत राठ से पहले गैर कांग्रेसी विधायक थे।

Newspoint24/संवाददाता 


 
हमीरपुर। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हमीरपुर जिले की सुरक्षित सीट राठ के साथ 2012 से कुछ ऐसा संयोग जुड़ गया है कि लोधी बाहुल्य इस सीट पर चुनाव में हार जीत का फैसला करने वाले लोधी समुदाय का अपना विधायक नहीं बन पाता है।

एक अनुमान के मुताबिक राठ विधानसभा क्षेत्र में लगभग 60 फीसदी लोधी बिरादरी के मतदाता हैं। लेकिन यह सीट 2012 में अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित होने के कारण इस सीट पर लोधी मतदाता ‘किंग मेकर’ तो हैं लेकिन अब पिछले दो चुनाव से ‘किंग’ नहीं बन पा रहे हैं। लिहाजा सभी राजनीतिक दलों को अपनी जीत के लिये चुनाव में लोधी मतदाताओं को अपने पाले में करने की हरसंभव कोशिश करनी पड़ती है।

इस विधानसभा सीट पर आठ बार कांग्रेस के ही विधायकों का कब्जा रहा है। पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के समर्थक माने जाने वाले लोधी मतों को अपने पाले में लाने के लिये इस बार भी सपा एवं भाजपा, लोधी मतदाताओं की चिरौरी करने में लगी है।

आजादी के बाद राठ सीट पर 1952 में हुये पहले चुनाव में कांग्रेस के श्रीपत सहाय ने जीत दर्ज करायी थी। जीत का सिलसिला जारी रखते हुये 1957 और 1962 में कांग्रेस के डूगर सिंह ने इस सीट पर कब्जा बरकरार रखा। वर्ष 1967 में भारतीय जनसंघ के राम सिंह राजपूत राठ से पहले गैर कांग्रेसी विधायक थे।

इसके बाद 1969 में कांग्रेस के स्वामी प्रसाद ने इस सीट को फिर अपनी पार्टी की झोली में डाल दिया। इसके बाद 1977 में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस से छिटक कर जनता पार्टी के पास चली गयी। वर्ष 1980 और 1985 में फिर यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी।

इस सीट पर 1990 के दशक से भाजपा, बसपा और फिर सपा के उभरने के कारण कांग्रेस का वर्चस्व टूटना प्रारंभ हुआ। इसकी शुरुआत 1989 के चुनाव में कांग्रेस की हार शुरु हुयी। जबकि 1991 के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत को बसपा की धमाकेदार एंट्री ने फीका कर दिया। वर्ष 1993 में हुये उपचुनाव में बसपा के चौधरी ध्रूराम राजपूत ने इस सीट पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद 1996 के उपचुनाव में सपा ने भी इस सीट पर खाता खोल लिया। सपा के रामाधार सिंह

राजपूत ने बसपा से यह सीट छीन ली 

इसके बाद 2002 और 2007 में हुये चुनाव में बसपा के ध्रूराम ने फिर अपने पाले में कर ली। इसके बाद 2012 में राठ विधानसभा सीट के ‘किंग’ इस सीट के आरक्षित होने के साथ ही ‘किंग मेकर’ बन कर रह गये। हालांकि इसके साथ ही सपा, बसपा और भाजपा के खिलाफ लामबंद होकर लोधी मतदाताओं ने अर्से बाद 2012 में यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी।

इसके बाद 2017 में बदले सियासी समीकरणों को देखते हुये लोधी मतदाताओं ने मोदी लहर में भाजपा की मनीषा अनुरागी को जिता कर कांग्रेस से यह सीट छीन ली। आगामी चुनाव में भी कांग्रेस सहित सभी मुख्य दलों ने लोधी मतों को लुभाने के लिये पूर जोर लगा दिया है। ऐसे में लोधी मतों के विभाजन की आशंका ने इस बार भाजपा के लिये कड़ी मशक्कत करने का साफ संकेत दिया है।

कांग्रेस के 2012 में विधायक बने गयादीन अनुरागी के सपा में शामिल होने के बाद सियासी समीकरण बदल गये हैं। जानकारों की राय में सपा यदि गयादीन को टिकट देती है तो भाजपा को इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिये जमकर पसीना बहाना होगा। इस स्थिति में राठ सीट की चुनावी तस्वीर तभी स्पष्ट हाे सकेगी जब सभी दलों के टिकट वितरित हो जायेंगे।

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