सर्दी की बरसात यानी की मावठ का दौर फसलों के लिए अमृत है  

The winter rains ie the period of Maavath is nectar for the crops.

इसमें कोई दो राय नहीं कि कड़ाके की सर्दी से जन-जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है।

फिर कोरोना का दौर चल रहा है सो अलग। ऐसे में सर्दी से बचाव भी एक बड़ी आवश्यकता हो जाती है। 

Newspoint24/डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्सों में सर्दी की बरसात यानी की मावठ का दौर चल रहा है। आसमान से एक एक बूंद अमृत बन कर टपक रही है तो यह रबी की फसलों को नया जीवन दे रही है। हालांकि सर्दी के तेवर तीखे होने के साथ ही जन-जीवन प्रभावित होने लगा है। कोरोना के नए दैत्यावतार ओमिक्रान के कारण अवश्य चिंता बढ़ रही है। फिर भी दो राय नहीं कि राजस्थान सहित समूचे उत्तरी भारत में सर्दी की मावठ से किसानों के चेहरे खिल गए हैं। इस समय रबी का सीजन चल रहा है। अच्छे मानसून के कारण देश में रबी फसलों का रकबा बढ़ रहा है। रबी फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। खासतौर से गेहूं की फसल के लिए समय पर सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। राजस्थान आदि प्रदेशों में सरसों की फसल के लिए जहां पानी की आवश्यकता पूरी होगी, वहीं चने की फसल को भी बड़ी राहत मिलेगी। बागवानी फसलों में मटर, गाजर मूली आदि इससे फलेंगी-फूलेंगी। हालांकि आज गांव-गांव में बिजली उपलब्ध होने से किसान पूरी तरह तो मावठ पर निर्भर नहीं रहते पर तेज सर्दी के साथ मावठ एवं बूंदाबांदी से काश्तकारों को बड़ी राहत मिलती है। किसानों को बड़ा फायदा जहां बिजली आने की प्रतीक्षा में कड़ाके की ठण्ड में खेतों की जुताई करने से राहत मिली है, वहीं बिजली के बिल पर होने वाले खर्चे से भी प्रकृति की मावठ के कारण छुटकारा मिल गया है। मावठ की बरसात का सीधा पर्यावरणीय लाभ फसलों को मिलता है और खेत लहलहा उठते हैं। इसके साथ ही सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता नहीं होने से पानी का दोहन सीमित हो जाता है। इस तरह से देखा जाए तो मावठ की यह बरसात बहुत ही लाभकारी सिद्ध होती है।

रबी फसल के समय बिजली की मांग बढ़ जाने से विद्युत वितरण निगमों को भी बिजली की व्यवस्था करने के लिए दो चार होना पड़ता है। पिछले दिनों देशव्यापी कोयला संकट के कारण बिजली निगम अभी पूरी तरह से सामान्य स्थिति में नहीं आ पाए हैं। विदेशों से आयातित कोयला भी बहुत अधिक महंगा होने से बिजली निगमों के पास दोहरा संकट हो गया है। विदेशों से आयात करने वाले निजी प्लेयर्स अब कोल इंडिया पर ही निर्भर हो गए हैं, तो इससे कोयले की मांग बढ़ गई है। किसानों को फसल के लिए समय पर बिजली उपलब्ध कराना सरकारों की प्राथमिकता होती है। यहां तक कि महंगी बिजली खरीद कर भी काश्तकारों को उपलब्ध करानी पड़ती है। इतना करने के बाद भी बिजली वितरण के समय या अन्य किसी कारण से व्यवधान केे कारण किसानों का आक्रोश भी क्षेत्र में देखने को मिल जाता है। इसलिए देखा जाए तो किसान ही नहीं अपितु सभी के लिए सर्दी की मावठ राहत लेकर आती है। सर्दी की मावठ, बून्दा-बान्दी व बरसात से फसलोें को पानी मिलने से करोड़ों रुपये की बिजली की बचत हो जाती है। इसके साथ ही जल दोहन भी बच जाता है। ऐसे में सर्दी के अमृत जल मावठ का स्वागत किया जाना चाहिए।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कड़ाके की सर्दी से जन-जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। फिर कोरोना का दौर चल रहा है सो अलग। ऐसे में सर्दी से बचाव भी एक बड़ी आवश्यकता हो जाती है। इस मौसम में सर्दी जनित बीमारियां भी बढ़ती हैं और इसके साथ ही बुजुर्गों के लिए सर्दी का मौसम थोड़ा तकलीफदेह हो जाता है पर इसका हल सर्दी से बचाव के तरीके अपना कर किया जा सकता है। कहा जाता है कि सर्दी का मौसम स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा मौसम होता है। इस मौसम में जीवंतता होती है। आप अच्छा खा-पी सकते हैं, अच्छा पहन सकते हैं। यही कारण है कि सर्दी में खान-पान पर विशेष जोर दिया जाता है।

प्रकृति की मेहरबानी से सर्दी की मावठ किसानों के लिए वरदान बन कर आई है। हमें जरूर दो चार दिन की सर्दी की तकलीफ भुगतनी पड़ेगी पर अन्नदाता किसानों और देश के बिजली निगमों को निश्चित रूप से यह राहत का समय है। करोड़ों रुपये की बिजली की बचत होगी और खेतों में फसलें फल फूल सकेंगी। अरबों रुपयों का कोयला बचेगा तो किसानों की फसल पर लागत कम होगी। इस कोरोना के दौर में तो अर्थ व्यवस्था में खेती किसानी की भूमिका विशेष रूप से रेखांकित हुई है। ऐसे में प्रकृति के इस उपहार का स्वागत करना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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