मुसलमान होने में आपत्ति नहीं , राष्ट्रवादी सोच ज़रूरी है धर्मांतरण और घुसपैठ रोकने के लिए ज़रूरी है एनआरसी : भागवत

मुसलमान होने में आपत्ति नहीं , राष्ट्रवादी सोच ज़रूरी है धर्मांतरण और घुसपैठ रोकने के लिए ज़रूरी है एनआरसी : भागवत

Newspoint24 /newsdesk /एजेंसी इनपुट के साथ 

खड़े रहना, temple और बाहर की फ़ोटो हो सकती है

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में धार्मिक असंतुलन पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बताया है साथ ही कहा है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, धर्मांतरण और घुसपैठ रोकने के लिए ज़रूरी है।

 विजयादशमी के मौके पर संघ के कार्यकर्ताओं को संबोधित किया  
श्री भागवत ने शुक्रवार को यहाँ विजयादशमी के मौके पर संघ के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते कहा कि जनसंख्या नियंत्रण होना ज़रूरी है और इसके लिए जनसंख्या नीति बननी चाहिए जो सभी के लिए समान रूप से लागू होनी चाहिये।
उन्होंने कहा कि विविध संप्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर, विदेशी घुसपैठ और मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की आबादी के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है।

1951 से 2011 के बीच मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात बढ़ा 
श्री भागवत ने कहा “वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में धार्मिक अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहाँ भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात घटा है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात बढ़ा है।”
उन्होंने कहा “बाहर से आए सभी सम्प्रदायों को माननेवालों सहित सभी को यह समझना होगा कि हमारी आध्यात्मिक मान्यता व पूजा की पद्धति की विशिष्टता के अलावा हम सभी एक सनातन राष्ट्र, एक समाज, एक संस्कृति में पले-बढ़े समान हिन्दू पूर्वजों के ही वंशज हैं। हमारी संस्कृति किसी को पराया नहीं मानती। आत्मीयता और समाज मे संतुलन ही भारतीयता है। ”

मुसलमान होने में आपत्ति नहीं , राष्ट्रवादी सोच ज़रूरी है
श्री भागवत ने कहा कि भारतीयता को मानने वाले विभिन्न धर्मों के लोग हमारे पूर्वजों के आदर्श की समझ रखते है। किसी को कोई भाषा, पूजा पद्वति छोड़ने की जरूरत नहीं बस कट्टरपंथी सोच छोड़ना ज़रूरी है। मुसलमान होने में आपत्ति नहीं , राष्ट्रवादी सोच ज़रूरी है, हिन्दू समाज सबको अपनाता है। कई मुसलमान आदर्श हैं, इसी कारण इस देश ने कभी हसनखाँ मेवाती, हाकिमख़ान सूरी, ख़ुदाबख्श , गौसखाँ जैसे वीर और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान जैसे क्रांतिकारी देखे। वे सभी के लिए अनुकरणीय हैं।”
संघ प्रमुख ने कहा “आज भी देश को बांटने के प्रयास चल रहे हैं और ऐसे लोगों ने गठबंधन भी बना लिया है। हिंदू समाज को कटा-बंटा रखने के लिए बहुत प्रयास चल रहे हैं। इसलिए भारत और उससे जुड़ी चीजों की निंदा करने के प्रयास चल रहे हैं। इतने प्राचीन जीवन से दुनिया देख रही है कि कैसे यह पतन से और टूटने से बचा है। भारत में इस भय से ये हमले चल रहे हैं कि यदि हम मजबूत हुए तो वह नहीं चल पाएंगे।”
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने से लोगों का डर खत्म हुआ इसलिए दोबारा डर पैदा करने के लिये वहां देशविरोधी ताकतें 'टारगेट' हत्याएं कर रहे हैं।
उन्होंने कहा “पंथ , प्रान्त और भाषा के भेद की वजह से समाज मे बंटवारा हुआ और आज़ादी के बाद विभाजन का दुख बहुत बड़ा है। इसलिए एकता और अखण्डता की पहली शर्त है भेद रहित समाज, हमें विभाजन का दर्द नहीं भूलना चाहिये। समरसता के लिए सभी समाज और पंथ धर्म के लोगों को आपस मे उत्सव, त्योहार मिलकर मनाना ज़रूरी है। राम मंदिर के निर्माण में धन संग्रह में सभी समुदाय के लोगों ने सहयोग दिया।”

हिन्दू मंदिरों का प्रश्न

हिन्दू मंदिरों की आज की स्थिति एक अहम प्रश्न है। दक्षिण भारत के मन्दिर पूर्णतः वहां की सरकारों के अधीन हैं। शेष भारत में कुछ सरकार के पास, कुछ पारिवारिक निजी स्वामित्व में, कुछ समाज द्वारा विधिवत् स्थापित विश्वस्त न्यासों की व्यवस्था में हैं। कई मंदिरों की कोई व्यवस्था ही नहीं ऐसी स्थिति है। मन्दिरों की चल/अचल सम्पत्ति का अपहार होने की कई घटनाएँ सामने आयी हैं। प्रत्येक मन्दिर तथा उसमें प्रतिष्ठित देवता के लिए पूजा इत्यादि विधान की परंपराएँ तथा शास्त्र अलग-अलग है, उसमें भी दखल देने के मामले सामने आते हैं। भगवान का दर्शन, उसकी पूजा करना, जात-पात-पंथ न देखते हुए सभी श्रद्धालु भक्तों के लिये सुलभ हों, ऐसा सभी मन्दिरों में नहीं है, यह होना चाहिये। मन्दिरों के, धार्मिक आचार के मामलों में शास्त्र के ज्ञाता विद्वान, धर्माचार्य, हिन्दू समाज की श्रद्धा आदि का विचार लिए बिना ही निर्णय किया जाता है, ये सारी परिस्थितियाँ सबके सामने हैं। सेक्युलर होकर भी केवल हिन्दू धर्मस्थानों को व्यवस्था के नाम पर दशकों शतकों तक हड़प लेना, अभक्त/अधर्मी/विधर्मी के हाथों उनका संचालन करवाना आदि अन्याय दूर हों, हिन्दू मन्दिरों का संचालन हिन्दू भक्तों के ही हाथों में रहे तथा हिन्दू मन्दिरों की सम्पत्ति का विनियोग भगवान की पूजा तथा हिन्दू समाज की सेवा तथा कल्याण के लिए ही हो, यह भी उचित व आवश्यक है।

स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव

यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75 वां वर्ष है। 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था। हम सब जानते हैं कि हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली। स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो इसकी, भारत की परंपरा के अनुसार समान सी कल्पनाएँ मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जातिवर्गों से निकले वीरों ने तपस्या त्याग और बलिदान के हिमालय खडे किये; दासता के दंश को झेलता समाज भी एकसाथ उनके साथ खड़ा रहा; तब शान्तिपूर्ण सत्याग्रह से लेकर सशस्त्र संघर्ष तक सारे पथ स्वाधीनता के पड़ाव तक पहुँच पाये। परन्तु हमारी भेदजर्जर मानसिकता, स्वधर्म स्वराष्ट्र और स्वतंत्रता की समझ का अज्ञान, अस्पष्टता, ढुलमुल नीति, तथा उनपर खेलने वाली अंग्रेजों की कूटनीति के कारण विभाजन की कभी शमन न हो पाने वाली वेदना भी प्रत्येक भारतवासी के हृदय में बस गई। हमारे संपूर्ण समाज को विशेष कर नयी पीढ़ी को इस इतिहास को जानना, समझना तथा स्मरण रखना चाहिए। किसी से शत्रुता पालने के लिए यह नहीं करना है। आपस की शत्रुताओं को बढाकर उस इतिहास की पुनरावृत्ति कराने के कुप्रयासों को पूर्ण विफल करते हुये, खोयी हुई एकात्मता व अखंडता हम पुनः प्राप्त कर सकें इस लिये वह स्मरण आवश्यक हैं।

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