लखीमपुर हत्याकांड : शीर्ष अदालत बोली उत्तर प्रदेश सरकार की जांच अपेक्षा के अनुरूप नहीं 

Lakhimpur massacre: Apex court said Uttar Pradesh government's investigation is not as expected

उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायालय को बताया कि इस मामले के सबूतों से

संबंधित लैब की रिपोर्ट 15 नवंबर तक आएगी। इस पर अदालत ने कहा

कि 10 दिन का समय दिया गया था। इस दौरान कुछ नहीं किया गया।

सरकार ने कहा कि लैब के कामकाज पर उसका नियंत्रण नहीं है।

Newspoint24/newsdesk /एजेंसी इनपुट के साथ 
 

नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हत्याकांड मामले में सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को एक बार फिर फटकार लगाते हुए कहा कि वह उसकी अब तक की जांच से संतुष्ट नहीं है तथा आरोप पत्र दाखिल होने तक उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायधीश की देखरेख में जांच करवाना चाहता है।

मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन और न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की खंडपीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सरकार की एसआईटी जांच को ‘ढीला ढाला’ बताते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि मुख्य अभियुक्त को बचाने की कोशिश की जा रही है।


शीर्ष अदालत बोली उत्तर प्रदेश सरकार की जांच अपेक्षा के अनुरूप नहीं 


शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान कई सवाल खड़े किए और कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार की जांच अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।

इस मामले में मामले सरकार की ओर से प्रस्तुत की गई प्रगति स्टेटस रिपोर्ट में गवाहों के बयान दर्ज करने की जानकारी के अलावा कुछ भी नया नहीं है। खंडपीठ ने पूछा कि मुख्य अभियुक्त आशीष के अलावा अन्य अभियुक्तों के मोबाइल फोन क्यों जब्त नहीं किए गए।

उन्होंने अन्य अभियुक्तों के मोबाइल फोन जब्त नहीं किए जाने पर गहरी नाराजगी जताई।

उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायालय को बताया कि इस मामले के सबूतों से संबंधित लैब की रिपोर्ट 15 नवंबर तक आएगी। इस पर अदालत ने कहा कि 10 दिन का समय दिया गया था। इस दौरान कुछ नहीं किया गया। सरकार ने कहा कि लैब के कामकाज पर उसका नियंत्रण नहीं है।

सरकार की जांच से असंतुष्ट खंडपीठ ने कहा कि वह इस मामले की जांच पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजीत सिंह से कराना चाहती है। इस पर श्री साल्वे ने कहा कि वह इस बारे में शुक्रवार को अगली सुनवाई में सरकार का पक्ष रखेंगे।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में तीन अक्टूबर को किसानों के प्रदर्शन के दौरान तीन आंदोलनकारियों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारी चार किसानों को कार से कुचलकर मारने के आरोप हैं यह आरोप केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा समेत अन्य लोगों पर लगाए गए है। आशीष को मुख्य आरोपी बताया गया है। 

गत 26 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई की थी। इस दौरान पीठ ने मामले की जांच में ढीले रवैया पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को फटकार लगाई थी। न्यायालय ने गवाहों की सुरक्षा का आदेश देते हुए सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने में तेजी लाने का आदेश दिया था।

पीठ ने सुनवाई के दौरान इस घटना को ‘जघन्य हत्या’ बताया 
पीठ ने सुनवाई के दौरान इस घटना को ‘जघन्य हत्या’ करार दिया था तथा सरकार को गंभीरता से मामले की जांच के आदेश दिये थे।
पिछली सुनवाई के दौरान सरकार ने पीठ को बताया कि जांच में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं की जा रही है। सरकार की ओर से कहा गया था कि 68 गवाहों में 30 के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए जा चुके है। शीर्ष न्यायालय ने गवाहों की कम संख्या बताते हुए कड़ी टिप्पणियां की थीं और कहा था कि सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुई घटना में सिर्फ 68 गवाह हैं।

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था, जिसे दो वकीलों के पत्रों के आधार पर जनहित याचिका में तब्दील कर दिया गया था। वकीलों की ओर से इस मामले की न्यायिक जांच और सीबीआई जांच की मांग की गई है।
गौरतलब है कि कई किसान संगठन केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ देशव्यापी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। करीब 40 से अधिक किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले राजधानी दिल्ली की सीमाओं के अलावा देश के अन्य हिस्सों में लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं ।

किसान संगठनए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों- कृषक उपज व्यापार (वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण) कानून-2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020 का विरोध कर रहे हैं। किसानों के विरोध के मद्देनजर शीर्ष अदालत ने जनवरी में इन कानूनों के लागू किए जाने पर रोक लगा दी थी।
 

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