दशहरे पर विशेषआखिर कब तक जलाते रहोगे रावण ! त्रेता युग के रावण का भी अपना एक चरित्र था…

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट त्रेता युग मे हुए भगवान राम और राक्षसराज रावण युद्ध को आज तक हम दोहराते आ रहे है।हर वर्ष रामलीला मंचन के माध्यम से भगवान राम के सद्चरित्र का स्मरण किया जाता है तो साथ मे रावण के अत्याचार भी याद करने पड़ते है।परिणाम भले ही भगवान राम के पक्ष में
 

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

त्रेता युग मे हुए भगवान राम और राक्षसराज रावण युद्ध को आज तक हम दोहराते आ रहे है।हर वर्ष रामलीला मंचन के माध्यम से भगवान राम के सद्चरित्र का स्मरण किया जाता है तो साथ मे रावण के अत्याचार भी याद करने पड़ते है।परिणाम भले ही भगवान राम के पक्ष में रहा हो ,परन्तु रावण को भी आज तक हम भूल नही पाए है।हर वर्ष बिना नागाह रावण का वध दृश्य दोहराया जाता है ।हर वर्ष ही रावण जलाया जाता है।लेकिन क्या इससे रावण पैदा होने बंद हो गए ?क्या राम बनने वालो में इज़ाफ़ा हुआ?कम से कम हाथरस जैसी घटनाओं पर गौर करे तो त्रेता युग के रावण का भी अपना एक चरित्र था।परन्तु आज के बलात्कारी, शोषक,अत्याचारी ,भ्र्ष्टाचारी ,राष्ट्रद्रोही उस समय के रावण से कही अधिक बदतर है।लेकिन उन्हें नही जलाया जाता।उन्ही में से कुछ विधानसभा तो कुछ लोकसभा पहुंच जाते है जिनका बाद में महिमा मंडन तक होता है।

हम  लंकापति राजा रावण को प्रतिशोध रूप में जलाने की परंपरा तो निभाते चले आ रहे है।लेकिन जिस अहंकारी रूपी रावण को जलाना चाहिए था वह तो कभी जलता ही नही है और वह हर साल जलने के लिए फिर से  सामने आ जाता है।  जितने रावण हम हर साल जलाते है, उससे ज्यादा रावण पैदा हो जाते है।क्योकि आज के समय में रावण केवल लंकाधिपति राजा रावण ही नही, बल्कि हमारे अन्दर का वह रावण है जो हमारी राक्षसी प्रवृति के कारण हमें इंसान से शैतान बना देता है। जिसको हम कभी जलाने या फिर समाप्त करने का प्रयास ही नही करते और न ही इसका हमे एहसास हो पाता है।भगवान राम के वनवास के दौरान अहंकारी राक्षस राजा रावण द्वारा साधू वेष में सीता माता के हरण के बाद उन्हे मुक्त कराने के लिए हुए राम रावण युद्ध में पहले एक के बाद एक राक्षस राज के महाबलियों के संहार के बाद विभिषण के सहयोग से लंकाधिपति रावण का भगवान राम वध कर दिया था। जिसे रावण रूपी बुराई के अन्त पर अच्छाई रूपी राम की जीत के रूप में देखा गया।रावण पर भगवान राम की विजय की खुशी राम भक्तों को इतनी अधिक हुई कि तब से आज तक इस ऐतिहासिक धटना की स्मृति में प्रतिवर्ष विजय दशमी पर्व यानि दशहरा मनाया जाने लगा और बुराई के प्रतीक रूप में रावण को जलाया जाने लगा। 

 सच पूछिए तो लंकाधिपति राजा रावण का तो फिर भी चरित्र था ,रावण ने अपनी बहन सूपनखा के अपमान का बदला लेने के लिए भगवान राम की अर्धांगिनी सीता माता का अपहरण किया, लेकिन उनकी पवित्रता को आंच नही आने दी और उन्हे अशोक वाटिका में ससम्मान रखा। परन्तु आज के रावणों का कोई चरित्र नही रह गया है। इसलिए आज के रावणों का अन्त होना आज की सबसे बडी चुनौती है।रामलीला मंचन के बाद दशहरे पर भले ही हम हर साल रावण जलाकर बुराई का अन्त करने की पहल करते हो परन्तु यथार्थ में रावण का अन्त पुतलों को जलाने से नही होता । असली रावण तों हम सबके अन्दर विकारों के रूप में विराजमान है।

काम, क्रोध, मोह, लोभ,अहंकार रूपी विकारों को जलाकर हम पावन बन जाए तो भगवान राम की पूजा सार्थक हो जाएगी और रावण रूपी विकारों का भी अन्त हो जाएगा।इतना ही नही रावण रूप में जो देश के गददार है,रावण रूप में जो देश की शान्ति का हरण करने वाले आंतकी है, रावण रूप में जो व्याभिचारी है ,रावण रूप में जो भ्रष्टाचारी है , रावण रूपी में जो हिंसावादी है, रावण रूप में जो धोटालेबाज है, रावण रूप में जो साम्प्रदायिकता का जहर समाज में धोल रहे है, रावण रूप में जो विकास के दुश्मन है, उनका अन्त करने से ही रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है। रामायण और राम चरित मानस में मयार्दा पुरूषोतम श्री राम का चरित्र एक आदर्श पुरूष का चरित्र दर्शाया गया है।ताकि समाज के लोग राम जैसा चरित्र अपना सके। राम के चरित्र और रामायण के अन्य पात्रों से शिक्षा ले सके, इसीलिए नवरात्रों में जगह जगह रामलीलाओं का मंचन किया जाता है।

राजा दशरथ को एक आदर्श  पिता के रूप में , भगवान राम को मयार्दा पुरूषोतम व रधुकुल रीत रूपी वचनों का पालन करने के रूप में , भाई लक्ष्मण को बडे भाई की भक्ति के रूप में ,भाई भरत को बडे भाई के प्रति समर्पण के रूप में ,उर्मिला को पति विरह के रूप में, कौशल्या को आदर्श मां के रूप में, केकई को अवसर का फायदा उठाने के रूप में जहां हमेशा याद किया जाता है। वही हनुमान की राम भक्ति ,विभिषण की सन्मार्ग शक्ति ,जटायु की पराक्रम सेवा और सुग्रीव की राम सहायता हमेशा अमर रहेगी। सच पूछिए तो रामायण एक आदर्श जीवन जीने का सन्मार्ग सीखाती है। तभी तो हम बार बार रामायण पढते है और दशहरे से पहले रामलीला का मंचन कर राम काल से प्रेरणा लेकर राम राज्य की कल्पना को साकार करने की कौशिश करते है।  राम किसी एक के नही बल्कि उन सभी के है, जो भगवान राम को अपना आदर्श मानकर उनके आदर्शो पर चलता है।

पिछले कुछ समय से भगवान राम को लेकर भी राजनीति की जाने लगी है। कोई राम मन्दिर बनाने के नाम पर वोट की राजनीति कर रहा है तो कोई राम को सिर्फ भगवाधारियों का बताकर उनके आदर्शो के साथ खिलवाड कर रहा है। जबकि भगवान राम अयोध्या के एक ऐसे महान राजा हुए है जिनके राज्य में कोई भी दुखी नही था। चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो ,उनके राज्य में सभी सुखी एवं प्रसन्न थे। तभी तो रामराज को अब तक का सबसे अच्छा राज्य कहा जाता है। राम राज्य की परिकल्पना साकार करने के लिए हम सबको अपने अपने विकारों को जलाना होगा, ठीक उसी रावण की तरह जिसे बुराई रूप में हम वर्षो से जलाते आ रहे है। आज देश में शायद ही कोई ऐसा विभाग हो जहां भ्रष्टाचार न हो, आज देश में शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां कोई अपराध न हुआ हो , आज देश में शायद ही ऐसा को राजनेता हो जिसने नम्बर दो के रास्ते पैसा न कमाया हो,आज देश में शायद ही कोई ऐसा अध्यापक हो जो बिना शिक्षा शुल्क लिए पढा रहा हो, आज देश में शायद ही कोई ऐसा चिकित्सक हो जो बिना किसी शुल्क के रोगियों की सेवा कर रहा हों , आज देश में शायद ही कोई ऐसी खादय सामग्री हो जो पूरी तरह से शुद्ध हो, ऐसे में कैसे राम के राज्य की परिकल्पना साकार हो पाएगी।

फिर चाहे कितने ही रावण क्यों न जला ले जब तक धर धर ,गली गली गांव गांव , शहर शहर बैठे रावणों का अन्त नही होगा तब तक विजय दशमी के पर्व को सार्थक नही माना जा सकता। हम सारे विकारो को त्यागकर उस रावण का अपने अन्दर से अन्त करे जो हमें राम नही बनने दे रहा है और हमे कदम कदम पर विकारग्रस्त कर हमें रावण जैसा बना रहा है।हमारे अंदर की विकारी प्रवर्ति, तामसिक खानपान और पाश्चात्य रहनसहन से मुक्त होकर ही हम मर्यादा में रहने और राम जैसा बनने की शुरुआत कर सकते है।तभी दशहरा यानि अपने अंदर छिपी दस कमियों या कमजोरियो को दूर कर हम विजय दशमी मना सकते है।

(लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलसचिव है।) डा0श्रीगोपालनारसन एडवोकेटपो0 बा0 81,रूडकी,उत्तराखण्ड मो0 9997809955