विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला : अयोध्या में जन्मे रघुराई, मानस की चौपाइयों से लीलास्थल गूंज उठा , भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के पैदा होते ही अयोध्या में खुशी छाई 

 

विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के दूसरे दिन सारा प्रसंग किले से 100 मीटर दूर स्थित अयोध्या जी के मैदान में हुआ।

लीला में श्रंगी ऋषि कृत यज्ञ की झांकी, अद्भुत झांकी, श्रीरामजी का जन्म, भगवान राम का विराट दर्शन, श्रीराम की बाल लीला, यज्ञोपवीत मृगया की लीला का मंचन हुआ।

इस दौरान काफी संख्या में भक्तगण मौजूद थे। अयोध्या मैदान को तीन खंडों में बांटा गया था। 

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

वाराणसी । भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के पैदा होते ही अयोध्या में खुशी छा गई। लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाई बांटते हैं। माता कौशल्या राम को पालकी में झूलाती हैं। गुरु वशिष्ठ चारों भाइयों को शिक्षा देते हैं।  वहीं, काशीराज के प्रतिनिधि अनंत नारायण सिंह राजशाही वेश में हाथी पर सवार होकर पहुंचे। लीला प्रेमी हर-हर महादेव का जयकारा लगा रहे थे और अनंत नारायण भक्त जनों का अभिनंदन स्वीकार कर रहे थे। 

विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के दूसरे दिन सारा प्रसंग किले से 100 मीटर दूर स्थित अयोध्या जी के मैदान में हुआ। लीला में श्रंगी ऋषि कृत यज्ञ की झांकी, अद्भुत झांकी, श्रीरामजी का जन्म, भगवान राम का विराट दर्शन, श्रीराम की बाल लीला, यज्ञोपवीत मृगया की लीला का मंचन हुआ। इस दौरान काफी संख्या में भक्तगण मौजूद थे। अयोध्या मैदान को तीन खंडों में बांटा गया था। 

रामनगर की रामलीला में दूसरे दिन क्या हुआ
एक ओर श्रंगी ऋषि की यज्ञशाला और भगवान राम के परिवार के सदस्य। अवधपुरी के रघुकुल शिरोमणि राजा दशरथ की तीनों रानी कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान की प्रार्थना करती हैं। अपनी रानियों का कष्ट देखकर राजा दशरथ अपना दुख गुरु वशिष्ठ को सुनाते हैं। 

 

(राजशाही वेश में हाथी पर सवार होकर पहुंचे काशीराज के प्रतिनिधि अनंत नारायण सिंह )

 गुरु वशिष्ठ राजा को धीरज रखने के लिए कहते हैं। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ श्रंगी ऋषि के साथ अग्नि देव की पूजा करते हैं। अग्नि देव तीनों रानियों को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं । भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघभन के जन्म के बाद ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देने के साथ नगर में गाना बजाना शुरू हो गया। अयोध्या में घी के दीये जलाए जाते हैं। गौहारिन को बुलाकर सोहर गवाया जाता है। दशरथ ने गुरु वशिष्ठ को बुलाकर पुत्रों का नामकरण कराया। फिर चारों पुत्रों का यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया।

(रामनगर की रामलीला के दूसरे दिन उमड़ी भीड़)

चारों भाई गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के लिए उनके आश्रम में चले जाते हैं और अल्प समय में ही समस्त विद्या सीख लेते हैं। वहां से आने के बाद वे पिता की आज्ञा से शिकार खेलने निकले और मृग का शिकार करके साथ ले आए, उसे अपने पिता दशरथ को दिखाते हैं, जिस पर दशरथ बड़े ही प्रसन्न होते हैं। यहीं पर चारों भाइयों की आरती के बाद दूसरे दिन की रामलीला को विराम दिया जाता है।

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