चीन के जासूसी जहाज युआन वांग-6 को भारतीय समुद्री क्षेत्र में घेरने को नौसेना तैयार

 
भारतीय नौसेना चीन के जासूसी जहाज युआन वांग-6 को एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईजेड) में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगी। एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन हिंद महासागर में 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है। ओडिशा के तट पर अब्दुल कलाम द्वीप से एक मिसाइल का परीक्षण होने से जासूसी जहाज के आने की सूचना से चौकन्नी नौसेना इससे पहले 2019 में पोर्ट ब्लेयर के पास चीनी शोध पोत शी यान 1 को भारत के ईईजेड से बाहर कर चुकी है।

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 

  • हिंद महासागर में भारत का एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन 200 समुद्री मील तक फैला
  • बांग्लादेश और श्रीलंका के बंदरगाह में चीनी जहाज के डॉक करने की आशंका बढ़ी

नई दिल्ली। भारतीय नौसेना चीन के जासूसी जहाज युआन वांग-6 को एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईजेड) में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगी। एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन हिंद महासागर में 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है। ओडिशा के तट पर अब्दुल कलाम द्वीप से एक मिसाइल का परीक्षण होने से जासूसी जहाज के आने की सूचना से चौकन्नी नौसेना इससे पहले 2019 में पोर्ट ब्लेयर के पास चीनी शोध पोत शी यान 1 को भारत के ईईजेड से बाहर कर चुकी है। अगर युआन वांग-6 भारत के ईईजेड में प्रवेश करने की कोशिश करता है तो भारतीय नौसेना इस बार भी ऐसा ही करेगी।

 

दरअसल, भारतीय नौसेना ने ओडिशा के तट पर अब्दुल कलाम द्वीप से एक मिसाइल का परीक्षण करने के अपने इरादे से 10-11 नवंबर को बंगाल की खाड़ी से लेकर हिंद महासागर तक नो फ्लाई जोन बनाए जाने की घोषणा की थी। ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस स्पेशलिस्ट डेमियन साइमन के मुताबिक इस मिसाइल की फ्लाई रेंज 2,200 किलोमीटर की हो सकती है। इसलिए पश्चिम में श्रीलंका और पूर्व में इंडोनेशिया के बीच उस एरिया को ब्लॉक कर दिया गया है, जो मिसाइल की टेस्टिंग रेंज में है। इसी बीच मिसाइल परीक्षण से पहले चीन ने हिंद महासागर में अपना ताकतवर जासूसी जहाज युआन वांग-6 भेजा है।

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) का जासूसी जहाज युआन वांग-6 हिंद महासागर में प्रवेश कर चुका है

समुद्र में जहाजों की आवाजाही को ट्रैक करने वाली ऑनलाइन संस्था मरीन ट्रैफिक के मुताबिक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) का जासूसी जहाज युआन वांग-6 हिंद महासागर में प्रवेश कर चुका है और इस समय इंडोनेशिया के बाली तट से नौकायन कर रहा है। आशंका है कि इसे ओडिशा तट के एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से भारत के मिसाइल परीक्षणों को ट्रैक करने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में भेजा गया है। चीन का यह जहाज आधिकारिक तौर पर अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत के रूप में पंजीकृत है। हालांकि, युद्धपोतों सहित विदेशी जहाज ईईजेड के माध्यम से स्वतंत्र रूप से नौकायन कर सकते हैं, लेकिन भारतीय कानून किसी भी विदेशी जहाज को बिना अनुमति के सर्वेक्षण, अनुसंधान या अन्वेषण की मनाही करता है।

भारतीय नौसेना ने इसीलिए 2019 में पोर्ट ब्लेयर के पास पाए जाने पर चीनी शोध पोत शी यान 1 को भारत के ईईजेड से बाहर कर दिया था। इसे भी शोध पोत के रूप में चीन का जासूसी जहाज माना जाता है। भारतीय नौसेना के इस कदम से चीन के साथ राजनयिक विवाद पैदा हो गया था। अब हिंद महासागर में चीनी जासूसी जहाज के आने की सूचना से भारतीय नौसेना फिर सतर्क है। अगर युआन वांग-6 भारत के ईईजेड में प्रवेश करने की कोशिश करता है तो भारतीय नौसेना इस बार भी ऐसा ही करेगी। इस पोत का गंतव्य किसी बंदरगाह के लिए नहीं बल्कि ''खुले समुद्र'' के लिए चिह्नित है और उसे वहीं तक सीमित रहना होगा।

आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि चीन के जहाज पर मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) और लंबी दूरी के समुद्री निगरानी विमानों की नजर है। यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि यह जहाज क्या ट्रैक कर रहा है, लेकिन हमारे ईईजेड में विदेशी सर्वेक्षण और अनुसंधान पोत को संचालित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। युआन वांग-6 जब तक अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में है, तब तक कोई कुछ नहीं कर सकता। हिंद महासागर में भारत का ईईजेड 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है।बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा साझा करने के बावजूद भारत अपने ईईजेड कानूनों को उन पर नहीं लागू नहीं कर सकता।

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि हमारे पास क्षेत्र का सीमांकन करने के लिए सिर्फ अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखाएं हैं। अगर बांग्लादेश युआन वांग-6 को चटगांव में या श्रीलंका चीनी जहाज को हंबनटोटा पोर्ट पर डॉक करने की अनुमति देता है, तब भी वह हमारे समुद्र तट के बेहद करीब होगा और भारतीय गतिविधियां ट्रैक कर सकता है। दरअसल, श्रीलंका चीन के कर्ज में डूबा हुआ है। इसलिए उसे हंबनटोटा बंदरगाह चीन को पट्टे पर देने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यही वजह है कि इस साल अगस्त में चीन के जासूसी जहाज युआन वांग-5 को भारत के विरोध के बावजूद हंबनटोटा में डॉक किया गया।

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