जीवित्पुत्रिका व्रत 2022 : 18 सितंबर को संतान की सुख- समृद्धि के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

 

शास्त्रों में जीवित्पुत्रिका व्रत को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, सुख- समृद्धि के लिए किया जाता है। वहीं हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।

जो इस बार 18 सितंबर को रखा जाएगा। इस व्रत को जीतिया या जिउतिया के नाम से भी जानते हैं।

Newspoint24/ ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी 
 

वैदिक पंचांग के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर को रखा जाएगा। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त, योग और महत्व…

शास्त्रों में जीवित्पुत्रिका व्रत को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, सुख- समृद्धि के लिए किया जाता है। वहीं हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जो इस बार 18 सितंबर को रखा जाएगा। इस व्रत को जीतिया या जिउतिया के नाम से भी जानते हैं।
 
शुभ मुहूर्त और महत्व…

ज्योतिष पंचांग के मुताबिक आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 17 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 13 मिनट से शुरू हो रही है। साथ ही यह तिथि अगले दिन 18 सितंबर को शाम 04 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदयातिथि को आधार मानकर जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर दिन रविवार को रखा जाएगा।

व्रत का शुभ मुहूर्त और पारण समय

ज्योतिष पंचांग के अनुसार 18 सितंबर को सुबह 06 बकर 33 मिनट तक सिद्धि योग है। वहीं इस दिन अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 41 मिनट तक है। साथ ही जीवित्पुत्रिका व्रत के सुबह 09 बजकर 12 मिनट से दोपहर 12 बजकर 14 मिनट तक लाभ और अमृत मुहूर्त रहेंगे। वहीं दोपहर में 01 बजकर 46 मिनट से दोपहर 03 बजकर 18 मिनट तक शुभ उत्तम मुहूर्त है। इस मुहूर्त में पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है। साथ ही हर कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। व्रत का पारण 19 सितंबर को सुबह 6 से 7 बजे तक कर सकते हैं।

व्रत का संबंध महाभारत काल से जानिए महत्व

इस व्रत का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। जब द्रोणाचार्य का वध कर दिया गया था, इसके बार आश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्राह्रास्त्र चल दिया था, जिससे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे गर्भ को नष्ट कर दिया था। फिर भगवान कृष्ण ने गर्भ में पल रहे शिशु को दोबारा जीवित कर दिया। फिर संतान का जन्म हुआ, जिसे  जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया।

साथ ही अष्टमी तिथि के दिन प्रदोष काल में जीमूत वाहन देवता की भी पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में एक छोटा सा तालाब बनाकर पूजा की जाती है। जैसे छठ पर पूजा की जाती है।