चैत्र मास की पूर्णिमा 16 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव , जानिए कैसे करें महाबीर हनुमान जी की पूजा, आरती, शुभ मुहूर्त 

 

Newspoint24/ ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी  

वाराणसी। हनुमानजी को कलयुग का जीवंत देवता माना जाता है यानी ऐसी कोई परेशानी नहीं है, जिसका समाधान हनुमानजी की पूजा से न किया जा सके। हनुमानजी से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। हनुमान जन्मोत्सव पर प्रमुख हनुमान मंदिरों में विशेष आयोजन व साज-सज्जा की जाती है। इस दिन घरों में भी हनुमानजी की विशेष पूजा की जाती है। आगे जानिए इस दिन कैसे करें हनुमानजी की पूजा, आरती, शुभ मुहूर्त आदि जानकारी…


चैत्र पूर्णिमा का समय और इस दिन बनने वाले योग
पंचांग के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 15 अप्रैल, शुक्रवार की रात लगभग 02:25 पर होगी, जिसका समापन 16 अप्रैल, शनिवार की रात लगभग 12:24 पर होगा। पूर्णिमा तिथि का सूर्योदय 16 अप्रैल को रहेगा, इसलिए इसी दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाना शास्त्र सम्मत रहेगा। ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी के अनुसार, इस दिन हनुमान जन्मोत्सव पर रवि योग बन रहा है, जो बहुत ही शुभ है। इस योग में की गई पूजा, उपाय आदि का बहुत ही जल्दी शुभ फल मिलता है।

 

इस विधि से करें हनुमानजी की पूजा
16 अप्रैल, शनिवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ स्थान पर हनुमानजी की प्रतिमा या चित्र इस प्रकार स्थापित करें की आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर हो। कंबल या सूती आसान पर बैठकर हाथ में चावल व फूल लें और इस मंत्र से हनुमानजी का ध्यान करें-


अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।

इसके बाद चावल व फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें। अब नीचे लिखे मंत्र से हनुमानजी को आसन अर्पित करें-


तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।

इसके बाद हनुमानजी की मूर्ति को गंगाजल से अथवा शुद्ध जल से स्नान करवाएं और पंचामृत (घी, शहद, शक्कर, दूध व दही ) से स्नान करवाएं। पुन: एक बार शुद्ध जल से स्नान करवाएं। अब ये मंत्र बोलकर हनुमानजी को वस्त्र (पूजा का धागा) अर्पित करें-

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहालकरणं वस्त्रमत: शांति प्रयच्छ मे।।
ऊँ हनुमते नम:, वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि।

इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें। इसके बाद केले के पत्ते पर या पान के पत्ते के ऊपर प्रसाद रखें और हनुमानजी को अर्पित कर दें, ऋतुफल अर्पित करें। (प्रसाद में चूरमा, चने या गुड़ चढ़ाना उत्तम रहता है।) अब लौंग-इलाइचीयुक्त पान चढ़ाएं।
पूजा का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए इस मंत्र को बोलते हुए हनुमानजी को दक्षिणा अर्पित करें-


ऊँ हिरण्यगर्भगर्भस्थं देवबीजं विभावसों:।
अनन्तपुण्यफलदमत: शांति प्रयच्छ मे।।
ऊँ हनुमते नम:, पूजा साफल्यार्थं द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि।।

अंत में एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजा करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

 

हनुमानजी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे। रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥
लंका जारि असुर संहारे। सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे। लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें। जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे। बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई। तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥


 

ये है हनुमानजी के जन्म की कथा
शिवपुराण के अनुसार, देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्त ऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्त ऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्रीहनुमानजी उत्पन्न हुए। इसके अलावा भी हनुमानजी के जन्म से जुड़ी कथाएं अन्य पौराणिक कथाओं में बताई गई हैं।