दहशत या कुछ और? चांद बाबा से लेकर राजू पाल और उमेश तक बीच सड़क पर होती है अतीक के दुश्मनों की हत्या

दहशत या कुछ और? चांद बाबा से लेकर राजू पाल और उमेश तक बीच सड़क पर होती है अतीक के दुश्मनों की हत्या
अतीक के गैंग ने सबसे पहले चांद बाबा की हत्या को अंजाम दिया था। इसी हत्या के बाद से अतीक अहमद का नाम माफियाओं के तौर पर जाना जाने लगा। प्रयागराज के चकिया में जन्में अतीक ने दसवीं में फेल होने के बाद ही अपराध की दुनिया में कदम रखा था। उस पर 17 साल की उम्र में 1979 में पहली बार कत्ल का मुकदमा दर्ज हुआ था। इसके बाद वह अपराध की दुनिया में आगे ही बढ़ता चला गया।

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 

प्रयागराज। उमेश पाल की हत्या मामले में पूर्व सांसद अतीक अहमद का नाम सामने आया। जेल में बंद होने के बावजूद उसने इस हत्याकांड को अपने गुर्गों से अंजाम दिलवाया। उमेश की हत्या के पीछे का सिर्फ और सिर्फ एक कारण था कि वह अतीक का दुश्मन था। अतीक अहमद के सामने अभी तक कई दुश्मन आए लेकिन उनमें से ज्यादातर को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसमें गौर करने वाली बात है कि अतीक के दुश्मनों की हत्याएं छिपकर नहीं सरेआम की जाती हैं।

दसवीं फेल होने के बाद रखा अपराध की दुनिया में कदम

 अतीक के गैंग ने सबसे पहले चांद बाबा की हत्या को अंजाम दिया था। इसी हत्या के बाद से अतीक अहमद का नाम माफियाओं के तौर पर जाना जाने लगा। प्रयागराज के चकिया में जन्में अतीक ने दसवीं में फेल होने के बाद ही अपराध की दुनिया में कदम रखा था। उस पर 17 साल की उम्र में 1979 में पहली बार कत्ल का मुकदमा दर्ज हुआ था। इसके बाद वह अपराध की दुनिया में आगे ही बढ़ता चला गया।

चुनाव में जीत के बाद की चांद बाबा की हत्या

1989 में सरेआम चांद बाबा की हत्या हुई थी। शहर में दिनदहाड़े चांद बाबा को मौत के घाट उतारकर यह संदेश दिया गया था कि अब पूरे इलाके में सिर्फ और सिर्फ एक ही डॉन है जिसका नाम अतीक अहमद है। कहा जाता है कि चांद और अतीक दोनों अपराध की दुनिया से राजनीति में जाने में कोशिश की थी। अतीक और चांद बाबा दोनों 1989 में चुनाव में उतरने का मन बनाया। चुनाव और खुद को बाहुबली साबित करने में अतीक को ही सफलता हासिल हुई।

चुनाव में हार के बाद बीच सड़क पर उतारा राजू पाल को मौत के घाट

साल 2002 में अतीक पर नस्सन और साल 2004 में उस पर भाजपा नेता अशरफ की हत्या का आरोप लगा। इन सब के बीच वह चुनाव में जीत भी हासिल करता रहा। अतीक को इलाहाबाद पश्चिम सीट से बड़ा झटका उस दौरान लगा जब वह 2004 में फूलपुर से सपा के टिकट पर सांसद बना। अतीक उस समय इलाहाबाद से विधायक भी था। इलाहाबाद पश्चिम सीट से अतीक के इस्तीफा देने के बाद यहां से सपा ने अतीक के भाई अशरफ को उम्मीदवार बनाया। इसी बीच अशरफ के सामने बसपा ने राजू पाल को उतारा। राजू पाल की चुनाव में जीत हुई और अशरफ की हार। यह हार अतीक के गढ़ में थी लिहाजा 25 जनवरी 2005 को उसने सरेआम राजू पाल की भी हत्या करवा दी। राजू पाल की हत्या को भी सरेआम बीच सड़क पर अंजाम दिया गया था। राजूपाल की गाड़ी जैसे ही रुकी तो हथियारबंद लोगों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दी। राजू को तकरीबन 19 गोली लगी थीं।

सरेआम की गई उमेश पाल की हत्या

उमेश पाल की हत्या भी अतीक के गुर्गों ने बीच सड़क पर उनके घर के पास की और यह संदेश दिया कि अतीक का दबदबा अभी भी कम नहीं हुआ है। जानकार मानते हैं कि उमेश पाल हत्याकांड के पीछे की अहम वजह राजूपाल केस में गवाही के अतिरिक्त कुछ और है। कहा जा रहा है कि उमेश पाल जमीन के मामलों में अतीक को लगातार चोट पहुंचा रहा था और इसी के चलते उसकी हत्या की गई। दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद भी बदमाश बड़े आराम से वहां से फरार होने में कामयाब रहें।

Share this story