गर्मी से मौतें:  वाराणसी में सामान्य दिनों से अधिक शव दिखे, प्रयागराज में 5 दिन में पहुंचे 93 शव, कानपुर में जगह नहीं

गर्मी से मौतें, प्रयागराज में 5 दिन में पहुंचे 93 शव, कानपुर में जगह नहीं; 3 शहरों में हालात बिगड़े

प्रदेश में पिछले 5 दिनों में (रविवार तक) 211 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। एक साथ हो रही इतनी मौतों के कारण पोस्टमॉर्टम हाउस फुल हैं। घाटों पर शव रखने की जगह नहीं है। पोस्टमॉर्टम और शव जलाने की लंबी वेटिंग चल रही है।

प्रयागराज में 5 दिन में 93 शव पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे। कानपुर में 58 शव पहुंचे। वहीं वाराणसी में नॉर्मल दिनों के मुकाबले पोस्टमॉर्टम हाउस और घाटों पर कहीं ज्यादा शव पहुंचे।

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 

लखनऊ। यूपी में भीषण गर्मी और तपन जानलेवा हो चुकी है। चलते-फिरते लोग बेहोश होकर गिरते हैं और अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। बलिया में पोलिंग बूथ पर खड़े-खड़े बुजुर्ग की जान चली गई। गाजियाबाद में सड़क पर चलते हुए युवक गिरा और मौत हो गई।

प्रदेश में पिछले 5 दिनों में (रविवार तक) 211 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। एक साथ हो रही इतनी मौतों के कारण पोस्टमॉर्टम हाउस फुल हैं। घाटों पर शव रखने की जगह नहीं है। पोस्टमॉर्टम और शव जलाने की लंबी वेटिंग चल रही है।

प्रयागराज में 5 दिन में 93 शव पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे। कानपुर में 58 शव पहुंचे। वहीं वाराणसी में नॉर्मल दिनों के मुकाबले पोस्टमॉर्टम हाउस और घाटों पर कहीं ज्यादा शव पहुंचे।

 

प्रयागराज- 5 दिन में 93 शव पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे।

कानपुर- 5 दिन में 58 शव पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे।

 

प्रयागराज में मौतों की संख्या को देखते हुए रात में भी अंतिम संस्कार किया जा रहा।

प्रयागराज में मौतों की संख्या को देखते हुए रात में भी अंतिम संस्कार किया जा रहा।

प्रयागराज पोस्टमॉर्टम हाउस : गर्मी की वजह से शव फूल रहे
 प्रयागराज के SRN अस्पताल कैंपस में बने पोस्टमॉर्टम हाउस में बदबू इतनी थी कि हमें मुंह पर कपड़ा बांधना पड़ा। लग रहा था, कुछ सड़ गया है। यहां पर पिछले 3 दिनों में रोज के मुकाबले शवों की संख्या दोगुना बढ़ गई है। हालत ये है कि कोल्ड चैंबर पूरा भर चुका है। पोस्टमॉर्टम हाउस के कैंपस में बाहर शवों को जमीन पर रखा जा रहा है।

जो लोग शवों के साथ आए हैं, वो किसी तरह से अपने परिजनों के शवों के पास बैठकर दिन काट रहे हैं। गर्मी की वजह से शव फूल रहे हैं, उनमें से पानी निकल रहा है। इतनी तेज बदबू आ रही है कि सांस लेना मुश्किल है। लोग लगातार मुंह पर रुमाल रखे हुए हैं।

करीब 500 मीटर के एरिया में बदबू की वजह से लोग आपस में बात तक नहीं कर पा रहे। एक कूलर शवों को ठंडा रखने के लिए बाहर लगाया गया है, लेकिन इतनी गर्मी में वो भी आग फेंक रहा है। काली पन्नी में लिपटे शवों को ठंडा रखने के लिए उनके परिजन कपड़े गीले करके उन पर डाल रहे हैं। लेकिन भीषण गर्मी में सब कुछ बेअसर हो रहा है।

जमीन इतनी गर्म है, हम लोगों के पैर जलने लगते हैं
जो लोग शवों के साथ आए हैं, उनका कहना है- यहां बैठने के बाद कुछ भी खाने-पीने का मन नहीं कर रहा। ऊपर से गर्मी ने जीना मुश्किल कर दिया है। हम लोग तो धूप से बचने के लिए पेड़ या फिर छत का सहारा ले रहे हैं।

लेकिन यहां भीड़ इतनी ज्यादा है कि वह जगह भी कम पड़ रही है। जो कपड़े हम पहने हैं, वो पसीने से कड़े हो गए हैं। दिन भर थोड़ी सी छांव में कहीं बैठ जाते हैं। अगर लेटना पड़ता है तो कोई ऐसी जगह ढूंढते हैं जो धूप में तपी न हो। जमीन इतनी गर्म है कि हम लोगों के पैर जलने लगते हैं। एक तो पहले अपनों को खोने का दर्द है, फिर मरने के बाद उनकी ऐसी हालत देखी नहीं जा रही।

प्रयागराज पोस्टमॉर्टम हाउस में एक साथ कई शव आए तो उनके परिजनों की भीड़ लग गई।

(प्रयागराज पोस्टमॉर्टम हाउस में एक साथ कई शव आए तो उनके परिजनों की भीड़ लग गई।)

रात में 10 बजे तक हो रहे पोस्टमॉर्टम
पोस्टमॉर्टम हाउस में काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया- प्रयागराज के पोस्टमॉर्टम हाउस में रोजाना औसतन 8 से 10 लाशें आती थीं। लेकिन अब एक दिन में 27 लाशों का पोस्टमॉर्टम हम लोगों ने पहली बार देखा है।

पोस्टमॉर्टम करने का समय सूर्यास्त तक ही होता है। लेकिन इतने ज्यादा शव आ रहे कि रात 10 बजे तक यहां के कर्मचारी-डॉक्टर पोस्टमॉर्टम करने में जुटे रहते हैं। हम लोगों की हालत बहुत खराब है। इतनी गंदगी हो जाती है कि साफ करते-करते मन अजीब हो जाता है। ऐसा लगता है, उल्टी हो जाएगी। इतनी मौतों का कारण गर्मी ही है। 1-2 लोगों की मौत बीमारी से हुई है।

पोस्टमॉर्टम करते समय डॉक्टर की तबीयत बिगड़ी
कर्मचारी ने बताया- जो भी शव यहां पर लावारिस आते थे, हम उनको कोल्ड चैंबर में रख देते थे। लेकिन कोल्ड चैंबर फुल होने की वजह से इन शवों को बाहर रखा गया है। 72 घंटे के बाद ही हम इनका पोस्टमॉर्टम कर सकते हैं। इस वजह से शव सड़ने लग रहे हैं। इन शवों का पोस्टमॉर्टम करते समय डॉक्टरों की हालत भी बहुत खराब हो जाती है। शवों के सड़ने की वजह से उनसे भीषण बदबू आती है।

पोस्टमॉर्टम हाउस में डॉ. विवेक सिंघल पोस्टमॉर्टम कर रहे थे। संख्या ज्यादा होने के चलते उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें चक्कर आने लगा, उल्टियां भी हुईं। इसके बाद उन्हें वहां से निकालकर दूसरी जगह रेस्ट के लिए ले जाया गया। मैंने खुद एक साथ पहली बार इतनी लाशें देखी हैं।

श्रृंग्वेरपुर के श्मशान घाट पर बढ़ी चिताओं की संख्या
प्रयागराज के श्रृंग्वेरपुर धाम के श्मशान घाट पर भी स्थिति काफी खराब दिखाई दे रही है। यहां चिताओं की संख्या बढ़ी है। सामान्य दिनों में यहां पर औसतन 30 लाशें जलाई जाती थीं, अब 100 से ज्यादा लाशें पहुंचने लगी हैं। यही कारण है कि अब लकड़ियों की भी किल्लत होने लगी है।

प्रयागराज के CMO डॉ. आशु पांडेय का कहना है- पोस्टमॉर्टम हाउस में तीन-चार दिनों से ज्यादा डेडबॉडी आ रही हैं। वहां के नोडल से जानकारी ली गई है। जरूरत पड़ी, तो डॉक्टरों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।

कानपुर पोस्टमॉर्टम हाउस : यहां बदबू की वजह से खड़ा होना मुश्किल

कानपुर में शवों को इस तरह से पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर रखा गया है।

(कानपुर में शवों को इस तरह से पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर रखा गया है।)

प्रयागराज की तरह कानपुर पोस्टमॉर्टम हाउस की स्थिति भी खराब है। कानपुर का पोस्टमॉर्टम हाउस 58 शवों से फुल हो गया है। यहां शव रखने की जगह नहीं बची है। कोल्ड चैंबर में जमीन पर शव रखे गए हैं। फिर भी शवों को बाहर रखना पड़ रहा है।

जो शव बाहर रखे हैं, उनसे बहुत तेज बदबू आने लगी है। इस वजह से वहां खड़ा होना भी मुश्किल हो गया है। शवों को छांव में रखा जा रहा, लेकिन जमीन गर्म होने की वजह से नीचे से गलने लगे हैं। इससे शवों को उठाना भी मुश्किल हो रहा है।

गर्मी की वजह से शवों पर लाल चकत्ते पड़ने लगे हैं। शव फूलने की वजह से स्किन फट रही है, जिसमें से पानी निकलता है। शवों के ऊपर मक्खियां भिनभिनाती रहती हैं। साथ आए परिजन पेपर या फिर कपड़े से शवों पर हवा करते रहते हैं, जिससे मक्खी न बैठने पाएं। एक हाथ वो मुंह पर लगाए रहते हैं और दूसरे से हवा करते रहते हैं।

कानपुर में पोस्टमॉर्टम हाउस में कुछ इस तरह से भी लावारिस लाश को रखा जा रहा है।

(कानपुर में पोस्टमॉर्टम हाउस में कुछ इस तरह से भी लावारिस लाश को रखा जा रहा है।)

यहां लावारिस लाशों को बहुत बुरी तरह से रखा जा रहा
जो लोग शवों के साथ आए हैं, वो भी गर्मी से बेहाल हैं। उनका कहना है, अपनों को यहां छोड़कर तो हम लोग जा नहीं सकते। कम से कम उनका अंतिम संस्कार तो अच्छे से कर दें। यहां लावारिस लाशों को बहुत बुरी तरह से रखा जा रहा है।

उनको कहीं पर भी डाल दिया जाता है। ये लोग भी क्या करें, जगह कम है और शव ज्यादा। इसी डर से हम लोग भी अपने शव को छोड़कर कहीं नहीं जा रहे। किसी तरह से पानी और हाथ वाले पंखे से हवा करके समय गुजार रहे हैं।

शुक्रवार को 38 शवों का पोस्टमॉर्टम हुआ। इनमें 7 लावारिस शव शामिल हैं। शनिवार को पोस्टमॉर्टम हाउस में 58 शव रखे हैं, इनमें से 45 लावारिस हैं। लावारिस शवों को देखते हुए पोस्टमॉर्टम हाउस ने जिला प्रशासन से शवों को रखने के लिए अतिरिक्त जगह की मांग की है। साथ ही CMO से पोस्टमॉर्टम के काम में अतिरिक्त डॉक्टर लगाने की भी मांग की, ताकि हालात कंट्रोल किए जा सकें।

कर्मचारी बोले- बार-बार मुंह धुलने की वजह से चेहरा भी सूख रहा
यहां पर काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है, बदबू से बचने के लिए हम लोग मुंह पर दो से तीन परत करके कपड़ा बांधते हैं। लेकिन गर्मी की वजह से मुंह पर दाने निकल रहे हैं। बार-बार मुंह धुलने की वजह से चेहरा भी सूख रहा है।

ऐसा लगता है, हमेशा शरीर से बदबू ही आती रहती है। यहां तो और लोगों की मांग भी की गई है। जिससे जल्दी-जल्दी पोस्टमॉर्टम किया जा सके। साथ ही जो डॉक्टर पोस्टमॉर्टम कर रहे हैं, उनको भी थोड़ा आराम मिल सके।

बदबू से बचने के लिए लोग लगातार मुंह पर मास्क लगाए हुए हैं।

(बदबू से बचने के लिए लोग लगातार मुंह पर मास्क लगाए हुए हैं।)

वाराणसी पोस्टमॉर्टम हाउस: सामान्य दिनों से अधिक शव दिखे
हमारी टीम वाराणसी के पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंची, तो वहां की स्थिति भी बहुत खराब मिली। प्रयागराज-कानपुर की तरह वाराणसी में भी गर्मी बढ़ने के बाद मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। पोस्टमॉर्टम हाउस में सामान्य दिनों से ज्यादा शव रखे दिखे।

भीड़ न लगे, इसलिए अतिरिक्त डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई गई है। जिला अस्पताल के अलावा सीएचसी और पीएचसी से भी डॉक्टरों को दिन के अनुसार बुलाया जा रहा है। जो लोग शवों के साथ आए हैं, वो गर्मी से परेशान दिखे। चेहरे को कपड़े से ढके परिजन अपनी बारी का इंतजार करते नजर आए।

वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रात में शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।

(वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रात में शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।)

मजबूरी में शवों के पास सो रहे परिजन
यहां के मणिकर्णिका घाट पर शवों को जलाने के लिए लंबी लाइन लगी है। पास-पास रखकर शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा। उसके बाद भी भीड़ कम नहीं हो रही। जिस घाट पर दिन के 100 शव आते थे, वहां अब आंकड़ा 400 के पार चला गया है। मजबूरी में लोग शवों के पास ही सोए जा रहे हैं।

जो पंडा अंतिम संस्कार की क्रिया करवाते हैं, वो भी एक साथ 2-3 लोगों का क्रिया-कर्म करवा रहे हैं। घाट पर काम करने वाले लोगों का कहना है, ये माहौल तो कोरोना की याद दिला रहा है। उस समय भी ऐसे ही मारा-मारी मची हुई थी।

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