पूर्व MLA बृजेश सिंह को बड़ी राहत: 37 साल पहले हुए सिकरौरा हत्याकांड में माफिया सहित 9 लोग बरी

पूर्व MLA बृजेश सिंह को बड़ी राहत: 37 साल पहले हुए सिकरौरा हत्याकांड में माफिया सहित 9 लोग बरी
10 अप्रैल 1986 को वाराणसी के सिकरौरा गांव (अब चंदौली जिले में) एक परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई। रात में इस वारदात को अंजाम दिया गया था। इसमें गांव के प्रधान रामचंद्र यादव, उनके दो भाई रामजन्म, सियाराम और चार मासूम बच्चों मदन, उमेश, टुनटुन, प्रमोद नृशंस हत्या की गई थी।

 Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 

प्रयागराज । पूर्व MLA बृजेश सिंह को बड़ी राहत मिली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 37 साल पहले हुए सिकरौरा हत्याकांड में पूर्व माफिया सहित 9 लोगों को बरी कर दिया है। हालांकि, 4 आरोपियों देवेंद्र सिंह, वकील सिंह, राकेश सिंह और पंचम सिंह को दोषी करार दिया है। उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई है। सोमवार को चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस अजय भनोट की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाया।

10 अप्रैल 1986 को वाराणसी के सिकरौरा गांव (अब चंदौली जिले में) एक परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई। रात में इस वारदात को अंजाम दिया गया था। इसमें गांव के प्रधान रामचंद्र यादव, उनके दो भाई रामजन्म, सियाराम और चार मासूम बच्चों मदन, उमेश, टुनटुन, प्रमोद नृशंस हत्या की गई थी।

वारदात की वजह जमीन संबंधी विवाद और ग्राम प्रधान चुनाव की रंजिश बताई गई थी। उस वक्त इसकी गूंज न सिर्फ पूर्वांचल बल्कि पूरे यूपी में सुनाई दी थी। रामचंद्र की पत्नी हीरावती देवी की तहरीर पर मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में बृजेश सिंह सहित 13 लोग आरोपी बनाए गए थे। इसके बाद पहली बार बृजेश सिंह को जेल जाना पड़ा था।

9 नवंबर को फैसला सुरक्षित किया था
2018 में वाराणसी की सेशन कोर्ट ने गवाहों के बयान में भिन्नता होने के चलते सभी 13 आरोपियों को बरी कर दिया था। सेशन कोर्ट के फैसले को वादिनी हीरावती और सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई चल रही थी। 9 नवंबर को सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

बृजेश ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर खुद को बताया था बेकसूर
9 नवंबर को कोर्ट में हुई सुनवाई में आरोपी बृजेश सिंह ने खुद को बेगुनाह बताया था। पीड़ित पक्ष यानी हीरावती की दलील थी कि ट्रायल कोर्ट ने घटना में घायल और पीड़ित के बयान को नजरअंदाज किया है। अगर घायल के बयान पर विचार किया गया होता तो अदालत आरोपियों को बरी नहीं करती।

सेशन कोर्ट के फैसले को वादिनी हीरावती और सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

ट्रायल के पहले विवेचक का बयान रिकॉर्ड पर लेने की हुई थी मांग
पीड़िता की ओर से CRPC की धारा 391 के तहत अर्जी दाखिल कर विवेचक का बयान रिकॉर्ड पर लेने की मांग की गई। याची ‌वकील उपेंद्र उपाध्याय ने कहा कि घटना का ट्रायल कई सालों बाद हुआ है। ट्रायल कोर्ट ने पहले विवेचक का बयान रिकॉर्ड पर लिया ही नहीं है। जबकि, ये बेहद अहम सबूत है। क्योंकि, एक गवाह ने घटना के दिन माफिया बृजेश सिंह को पकड़ा था। उसका विवेचक द्वारा दर्ज बयान ट्रायल कोर्ट में पढ़ा ही नहीं गया। इस पर कोर्ट ने उसे रिकॉर्ड पर लेते हुए प्रतिवादी वकील से आपत्ति मांगी थी।

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