वाराणसी की गोल्ड मेडलिस्ट पूनम यादव इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक से चूकी

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ
वाराणसी। इंग्लैंड के बर्मिंघम में खेले जा रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में बनारस के दांदूपुर गांव निवासी किसान की बेटी पूनम यादव पदक से चूक गईं। महिलाओं की 76 किलो भार वर्ग में क्लीन एंड जर्क के तीन प्रयास में वे एक बार भी 116 किलो का वजन नहीं उठा पाईं। स्नैच राउंड में बेस्ट 98 किग्रा भार उठाकर पूनम दूसरे नंबर पर रही थीं। मगर दूसरे यानी जर्क एंड स्नैच राउंड में पूनम के तीनों प्रयास असफल रहे।
इसी राउंड के तीसरे प्रयास में पूनम ने 116 किग्रा भार उठाया था, लेकिन बजर बजने से पहले उन्होंने भार नीचे रख दिया। इस तरह उनका यह प्रयास भी असफल माना गया। भारतीय दल ने रेफरी के फैसले को चुनौती दी लेकिन गेम्स ज्यूरी ने इसे खारिज कर दिया। पूनम ने पिछले कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में गोल्ड मेडल जीता था। तब वह 69 किग्रा इवेंट में उतरी थीं।
उससे पहले 2014 कॉमनवेल्थ में पूनम ने 63 किग्रा इवेंट में ब्रॉन्ज जीता था। वह 2015 कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप में भी गोल्ड जीत चुकी हैं। पूनम पांच बहन और दो भाइयों में चौथे पर नंबर हैं। पूनम के साधारण लड़की से स्पोर्ट्स वूमेन बनने की कहानी भी काफी रोचक है।
बेटियों को खेल खिलाने पर गांव के लोग मारते थे ताना
पूनम आज जिस मुकाम पर हैं, उसमें उनके पिता और बड़ी बहन का बहुत योगदान है। उन्होंने घर के बागीचे में ही बेटियों के वेटलिफ्टिंग का प्रशिक्षण शुरू कराया। बेटियों को खेल खिलाने पर गांव के लोगों ने तो ताना मारना शुरू कर दिया था लेकिन पिता ने हार नहीं मानी।
पूनम की मां ने बताया कि उसके पिता कैलाश ने कर्णम मल्लेश्वरी का गेम्स देख कर बेटी को वेटलिफ्टर बनाया। 2011 में बड़ी बहनों को देखकर पूनम ने ग्राउंड जाना शुरू किया। गरीबी के चलते पूरी डाइट नहीं मिल पाती थी। मुफलिसी का आलम ये था कि 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेल में हिस्सा लेने के लिए पूनम के पिता ने भैंस तक बेच दी थी
जब वहां कांस्य पदक जीता तो मिठाई बांटने के लिए पैसे नहीं थे। मां बाप के खेतों में काम से लेकर घर में भैंस और अन्य जानवरों को चारा देने तक का काम पूनम ही करती थी, लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। तमाम चुनौतियों पर विजय पाते हुए पूनम यादव ने कई पदक जीते।
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