जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद ज्योतिष पीठ की गद्दी संभालेंगे काशी के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

Swami Avimukteshwaranand of Kashi will take over the throne of Jyotish Peeth after Jagadguru Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati becomes Brahmalin

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 
वाराणसी। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उत्तराधिकारी तय हो गए हैं। स्वामी स्वरूपानंद  दो पीठों ज्योतिष पीठ और द्वारकाशारदा पीठ के शंकराचार्य थे। ज्यातिष पीठ बद्रीनाथ पर उनके शिष्य काशी के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को नया शंकराचार्य घोषित किया गया है।

जबकि द्वारकाशारदा पीठ पर स्वामी सदानंद सरस्वती के नाम की घोषणा की गई है। सोमवार को शिवसायुज्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के पार्थिव शरीर के समक्ष दोनों के नाम की घोषणा की गई। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद को भू समाधि आज जबलपुर में दी जाएगी। 

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बारे में 
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य घोषित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बनारस से गहरा नाता है। काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है। इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे।
 
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं। जानकारी के मुताबिक, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का मूलनाम उमाशंकर है। प्रतापगढ़ में प्राथमिक शिक्षा के बाद वे गुजरात चले गए थे। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य पूज्य ब्रह्मचारी श्री रामचैतन्य जी के सान्निध्य और प्रेरणा से संस्कृत शिक्षा आरंभ हुई।

स्वामी करपात्री जी के अस्वस्थ होने पर वह ब्रह्मचारी रामचैतन्य के साथ काशी चले आए। वहां स्वामी करपात्री जी के ब्रह्मलीन होने तक उन्हीं की सेवा में रहे। वहीं पर इन्हें पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निरंजन-देवतीर्थ और ज्योतिष्पीठाधीश्वर  स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दर्शन एवं सान्निध्य मिला।
 
2003 में बने दंडी संन्यासी
उन्हीं की प्रेरणा से नव्यव्याकरण विषय से काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आचार्य पर्यंत अध्ययन किया। इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री पद पर चुने गए। 15 अप्रैल, 2003 को उमाशंकर को दंड संन्यास की दीक्षा देकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती नाम दे दिया गया। केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ की पूरी कमान संभालते हैं। 
 
प्रतिकार यात्रा और मंदिर बचाओ आंदोलन का किया नेतृत्व
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने 2015 में संतों पर लाठी चार्ज के विरोध में अन्याय प्रतिकार यात्रा निकाली थी। इसके पूर्व गंगा सेवा अभियान यात्रा काशी से निकाली। उन्होंने काशी में मंदिर बचाओ आंदोलन निकालकर देश भर के सनातन हिंदुओं को जागृत किया था। ज्ञानवापी में आदि विश्वेश्वर की पूजा के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अन्न जल त्याग कर धरना भी दिया था। 


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