चंबल सेंचुरी में अवैध मत्स्य आखेट घड़ियालों के अस्तित्व पर संकट

अरैया, 20 जनवरी (हि.स.)। जनपद में वन्य जीवों को संरक्षित रखने के उद्देश्य से चलाई जा रही चंबल सेंचुरी प्रोजेक्ट का हाल इन दिनों खस्ताहाल है। विभागीय कर्मियों की उदासीनता और खाऊ-कमाऊ नीति के चलते चंबल सेंचुरी क्षेत्र में जलीय जीवों के अस्तित्व पर संकट आ खड़ा हुआ है।    उल्लेखनीय है कि वर्ष 1978 में राष्ट्रीय अधिसूचना जारी कर चंबल नदी और इसकी सहायक नदियों में घड़ियाल, मगरमच्छ, कैटफिश, कछुएं, डॉल्फिन सहित तमाम प्रजाति के वन्य जीवों को संरक्षित किया गया था। जिनके शिकार और नदी में आखेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। जिसकी प्रतिदिन निगरानी के लिए विभाग का गठन भी किया गया था। आज उसी विभाग के कर्मियों की उदासीनता इन जीवों के लिए संकट बन गया है। सूत्रों की मानें तो इनकी मिलीभगत से इस प्रतिबंधित क्षेत्र में जमकर मछलियों का शिकार स्थानीय शिकारी करते हैं और इनके जाल में फंसकर शावक घाड़ियाल, डॉल्फिन सहित कछुओं की निर्मम मौत हो जाती है।  ग्रामीण अनुज तिवारी, गुड्डू, महेश बताते हैं कि आए दिन मछुआरों के जाल में फंसकर जलीय जीवों की असमय मौत हो जाती है। कागजी कार्यवाही कर विभाग अपना पल्ला झाड़ कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर लेता है।    क्या कहते हैं अधिकारी      इस संबंध में उप वन्य संरक्षक दिवाकर श्रीवास्तव का कहना है कि वन्य जीवों की सुरक्षा और संरक्षा को लेकर विभाग गंभीर है। समय-समय पर पेट्रोलिंग भी करवाई जाती है। शिकायत मिलने पर शिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही अमल में लाई जाती है।      क्या है चंबल सेंचुरी      उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित राजस्थान की जलीय क्षेत्र को वन्य जीव अभयारण्य के रूप में विकसित कर सन 1978 में विशेष अधिसूचना जारी कर 2100 वर्ग मील क्षेत्र को चंबल सेंचुरी का दर्जा दिया गया था।    प्राकृतिक परिस्थितियां भी हैं कारण      जानकार लोगों की मानें तो प्राकृतिक खराब मौसम भी जलीय जीवों पर संकट का कारण है। सर्दियों के मौसम में पाला और कोहरा भी इनकी मौत का कारण बन जाता है। ऐसे समय में इनको पेट्रोलिंग कर जरूरी उपचार भी दिया जा सकता है लेकिन विभागीय उदासीनता के चलते संभव नहीं हो पाता है।      केंद्रों में ऐसे सहजे जाते हैं घड़ियाल के अंडे    मादा घड़ियाल हजारों की संख्या में चंबल किनारे रेत की गहराई में अंडा देती हैं लेकिन वन विभाग उनमें से केवल 200 अंडों को सहज कर पाता है। हर अंडे का वजन 150 से 200 ग्राम तक रहता है। मादा घड़ियाल के अंडे देने के 45 दिन बाद वन विभाग अंडों को उठाकर घड़ियाल केंद्र में लाता है। यहां इन अंडों को 15 दिन तक रखा जाता है। मादा के अंडे देने के 60 दिन बाद हैचेंज कर ली जाती है। अंडों से घड़ियाल निकालने की प्रक्रिया को हैचेंज कहा जाता है। जो हर साल मई के जून महीने में होती है।      घड़ियालों को सर्दी में भूख लगती है कम    ढाई वर्ष पूरा होने पर घड़ियालों को चंबल नदी में छोड़ा जाता है। चंबल नदी में छोड़ने के कुछ दिनों बाद तक यह परेशान रहते हैं। घड़ियाल कोल्ड ब्लडेड एनिमल है। अधिक सर्दी में इन्हें भूख कम लगती है। घड़ियाल केंद्र से जब चंबल नदी में इन्हें छोड़ा जाता है तो इनके सामने भोजन की समस्या अधिक रहती है। इसके साथ ही इन्हें नया वातावरण मिलता है। इन दोनों परिस्थितियों को अनुकूल करने में समय लगता है। घड़ियाल केंद्र में इनको भरपूर भोजन मिलता है लेकिन चंबल नदी में इनको भोजन खोजना पड़ता है।    चंबल नदी के अलावा इन नदियों में ही पाए जाते हैं घड़ियाल    घड़ियालों की प्रजाति हर उस नदी में पाई जाती है जो गंगा में जाकर मिलती है लेकिन चंबल नदी में घड़ियालों की सबसे ज्यादा प्रजाति पाई जाती हैं। देश में सबसे ज्यादा घड़ियाल चंबल नदी में ही पाए जाते हैं। जबकि दूसरे स्थान पर बिहार की गंडक नदी आती है। उत्तर प्रदेश की गरबा नदी, उत्तराखंड में रामगंगा नदी, नेपाल में नारायणी व राप्ती नदी में भी घड़ियाल पाए जाते हैं।  चंबल सेंचुरी में कितनी है इनकी संख्या    घड़ियाल - 2100  मगरमच्छ - 600  डॉल्फिन - 160, ये सभी आंकड़े विभागीय है।

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ 

अरैया। जनपद में वन्य जीवों को संरक्षित रखने के उद्देश्य से चलाई जा रही चंबल सेंचुरी प्रोजेक्ट का हाल इन दिनों खस्ताहाल है। विभागीय कर्मियों की उदासीनता और खाऊ-कमाऊ नीति के चलते चंबल सेंचुरी क्षेत्र में जलीय जीवों के अस्तित्व पर संकट आ खड़ा हुआ है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1978 में राष्ट्रीय अधिसूचना जारी कर चंबल नदी और इसकी सहायक नदियों में घड़ियाल, मगरमच्छ, कैटफिश, कछुएं, डॉल्फिन सहित तमाम प्रजाति के वन्य जीवों को संरक्षित किया गया था। जिनके शिकार और नदी में आखेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। जिसकी प्रतिदिन निगरानी के लिए विभाग का गठन भी किया गया था।

आज उसी विभाग के कर्मियों की उदासीनता इन जीवों के लिए संकट बन गया है। सूत्रों की मानें तो इनकी मिलीभगत से इस प्रतिबंधित क्षेत्र में जमकर मछलियों का शिकार स्थानीय शिकारी करते हैं और इनके जाल में फंसकर शावक घाड़ियाल, डॉल्फिन सहित कछुओं की निर्मम मौत हो जाती है।

ग्रामीण अनुज तिवारी, गुड्डू, महेश बताते हैं कि आए दिन मछुआरों के जाल में फंसकर जलीय जीवों की असमय मौत हो जाती है। कागजी कार्यवाही कर विभाग अपना पल्ला झाड़ कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर लेता है।

क्या कहते हैं अधिकारी

इस संबंध में उप वन्य संरक्षक दिवाकर श्रीवास्तव का कहना है कि वन्य जीवों की सुरक्षा और संरक्षा को लेकर विभाग गंभीर है। समय-समय पर पेट्रोलिंग भी करवाई जाती है। शिकायत मिलने पर शिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही अमल में लाई जाती है।

क्या है चंबल सेंचुरी

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित राजस्थान की जलीय क्षेत्र को वन्य जीव अभयारण्य के रूप में विकसित कर सन 1978 में विशेष अधिसूचना जारी कर 2100 वर्ग मील क्षेत्र को चंबल सेंचुरी का दर्जा दिया गया था।

प्राकृतिक परिस्थितियां भी हैं कारण

जानकार लोगों की मानें तो प्राकृतिक खराब मौसम भी जलीय जीवों पर संकट का कारण है। सर्दियों के मौसम में पाला और कोहरा भी इनकी मौत का कारण बन जाता है। ऐसे समय में इनको पेट्रोलिंग कर जरूरी उपचार भी दिया जा सकता है लेकिन विभागीय उदासीनता के चलते संभव नहीं हो पाता है।

केंद्रों में ऐसे सहजे जाते हैं घड़ियाल के अंडे

मादा घड़ियाल हजारों की संख्या में चंबल किनारे रेत की गहराई में अंडा देती हैं लेकिन वन विभाग उनमें से केवल 200 अंडों को सहज कर पाता है। हर अंडे का वजन 150 से 200 ग्राम तक रहता है।

मादा घड़ियाल के अंडे देने के 45 दिन बाद वन विभाग अंडों को उठाकर घड़ियाल केंद्र में लाता है। यहां इन अंडों को 15 दिन तक रखा जाता है। मादा के अंडे देने के 60 दिन बाद हैचेंज कर ली जाती है। अंडों से घड़ियाल निकालने की प्रक्रिया को हैचेंज कहा जाता है। जो हर साल मई के जून महीने में होती है।

घड़ियालों को सर्दी में भूख लगती है कम

ढाई वर्ष पूरा होने पर घड़ियालों को चंबल नदी में छोड़ा जाता है। चंबल नदी में छोड़ने के कुछ दिनों बाद तक यह परेशान रहते हैं। घड़ियाल कोल्ड ब्लडेड एनिमल है। अधिक सर्दी में इन्हें भूख कम लगती है। घड़ियाल केंद्र से जब चंबल नदी में इन्हें छोड़ा जाता है तो इनके सामने भोजन की समस्या अधिक रहती है।

इसके साथ ही इन्हें नया वातावरण मिलता है। इन दोनों परिस्थितियों को अनुकूल करने में समय लगता है। घड़ियाल केंद्र में इनको भरपूर भोजन मिलता है लेकिन चंबल नदी में इनको भोजन खोजना पड़ता है।

चंबल नदी के अलावा इन नदियों में ही पाए जाते हैं घड़ियाल

घड़ियालों की प्रजाति हर उस नदी में पाई जाती है जो गंगा में जाकर मिलती है लेकिन चंबल नदी में घड़ियालों की सबसे ज्यादा प्रजाति पाई जाती हैं। देश में सबसे ज्यादा घड़ियाल चंबल नदी में ही पाए जाते हैं। जबकि दूसरे स्थान पर बिहार की गंडक नदी आती है। उत्तर प्रदेश की गरबा नदी, उत्तराखंड में रामगंगा नदी, नेपाल में नारायणी व राप्ती नदी में भी घड़ियाल पाए जाते हैं।

चंबल सेंचुरी में कितनी है इनकी संख्या

घड़ियाल - 2100

मगरमच्छ - 600

डॉल्फिन - 160, ये सभी आंकड़े विभागीय है।

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