अयोध्या: आयोग से चयनित प्रधानाचार्यों को तदर्थ का वेतन देने पर फंसा पेच

अयोध्या: आयोग से चयनित प्रधानाचार्यों को तदर्थ का वेतन देने पर फंसा पेच

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

अयोध्या। उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से चयनित होकर नियमित प्रधानाचार्य बनने वाले प्रधानाचार्यों को मिल रहे तदर्थ वेतन व उनका वेतन निर्धारण का मामला माध्यमिक शिक्षा विभाग के गले की फांस बन गया है।

आयोग से नियमित प्रधानाचार्य बने तदर्थ प्रधानाचार्यों को उनकी तदर्थ सेवाएं जोड़ने सम्बन्धी मामला सामने आने के बाद डीआईओएस के लेखा विभाग में खलबली मची हुई है।

बताया गया कि इस तरह का यह मामला अयोध्या जनपद में ही नहीं, बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों में भी है। वहीं आयोग से चयनित प्रधानाचार्यों को तदर्थ सेवाओं का लाभ मिलने को लेकर पूर्व में जारी शासनादेशों से भी भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है। इसलिए अब इस प्रकरण को हल करने को लेकर वित्त नियंत्रक से मार्गदर्शन मांगा गया है।

दरअसल 2011 की रिक्ति के सापेक्ष कुछ माह पूर्व जनपद अयोध्या में तदर्थ प्रधानाचार्य के रूप में कार्य करने वाले दो अनुदानित विद्यालयों के प्रधानाचार्यों का आयोग से नियमित चयन हुआ था।

प्रकरण तब गरमाया जब इनके वेतन निर्धारण व तदर्थ सेवा लाभ को लेकर शिकायत की गयी। इसके बाद एक आयोजित से चयनित तदर्थ प्रधानाचार्य का वेतन तो निर्धारित हो गया लेकिन दूसरे प्रधानाचार्य को अभी भी तदर्थ वेतन का लाभ देने की शिकायतें उच्चाधिकारियों तक पहुंच गयीं।

जितेन्द्र सिंह द्वारा जब इस मामले में की गई शिकायत की फाइल खुली तो तदर्थ प्रधानाचार्यों का वेतन निर्धारण व तदर्थ सेवाओं को जोड़ने का पेच फस गया। बताते हैं कि चयन बोर्ड से चयनित प्रधानाचार्य पद पर चयनित होकर आते हैं उनको आयोग से चयनित प्रधानाचार्य का वेतन मिलना चाहिये। 

आयोग से चयनित प्रधानाचार्य का मूल मासिक वेतनमान 78800 रुपये है। आयोग से चयनित प्रधानाचार्यों को तदर्थ प्रधानाचार्य के कार्यकाल की सेवाएं नहीं जुड़नी चाहिये। इसे लेकर 28 जनवरी 1985 व 16 फरवरी 1990 व 2016 में शासनादेश भी है। दूसरी ओर चयन बोर्ड से चयनित होने के बाद से ही उनकी प्रधानाचार्य की सेवाएं जोड़ी जा सकती हैं।

लेकिन आयोग से चयनित बहुत से प्रधानाचार्यों द्वारा अपनी तदर्थ सेवाओं की जोड़वाकर लाभ लिया गया। जिले के ऐसे फिलहाल दो मामले हैं। सवाल यह उठता है कि अब तक जिन्होंने तदर्थ सेवाएं जुड़वाकर उच्च वेतनमान प्राप्त किया, क्या इसकी जांच कराकर उनसे विभाग रिकवरी कराएगा। 

जिले में अभी ऐसे दो प्रधानाचार्यों का मामला है। इसके पहले इस तरह का कोई केस सामने नहीं आया है। पूरे प्रदेश की यह समस्या आ रही है। समय-समय पर जारी शासनादेश से भी विरोधाभास पैदा हो गया है।

अभी यह निर्धारित नहीं हो पाया है कि यह वित्तीय अनियमितता है कि नहीं। यह पहली बार प्रकरण आया है इसलिए स्थिति स्पष्ट नहीं है। अगर वेतन से अधिक भुगतान हुआ होगा तो उसकी रिकवरी कराई जाएगी। स्थिति स्पष्ट करने के लिए ही वित्त नियंत्रक प्रयागराज से मार्गदर्शन मांगा गया है

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