ग्लोबल वार्मिंग : अंटार्कटिका में 1997 से अब तक 12 ट्रिलियन टन बर्फ पिघली, पश्चिमी इलाकों में घटनाएं दोगुनी

 

ग्लोबल वार्मिंग : अंटार्कटिका में 1997 से अब तक 12 ट्रिलियन टन बर्फ पिघली, पश्चिमी इलाकों में घटनाएं दोगुनी

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ 

अंटार्कटिका ।  क्लाइमेट चेंज के कारण दुनिया का हर एक कोना प्रभावित हो रहा है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में हो रहे बदलावों की स्टडी की है। उनका कहना है कि इस इलाके में 1997 से अब तक 12 ट्रिलियन टन बर्फ पिघल गई है। यह पिछले अनुमान से दोगुना है। बर्फ पिघलने के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, जिसका बुरा असर पूरी दुनिया पर होगा।

अर्थ सिस्टम साइंस डेटा जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने लगभग 3 बिलियन डेटा पॉइंट्स को जोड़ा। यह बर्फ की चादर की बदलती ऊंचाई पर सबसे लंबे समय तक का डेटा सेट है। वैज्ञानिकों ने पाया कि लंबे समय तक मौसम में बदलाव से अंटार्कटिका की बर्फ पर भी असर पड़ता है।

रिसर्चर्स का कहना है कि अंटार्कटिका में बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया महाद्वीप के बाहरी हिस्से से भीतरी हिस्से में फैल चुकी है। पिछले 10 साल में बर्फ का पिघलना अंटार्कटिका के पश्चिमी इलाकों में लगभग दोगुना हो गया है। साथ ही पिछले 25 साल में अंटार्कटिका की कोस्टलाइन में भी बदलाव आया है। इसकी वजह ग्लेशियर पिघलने के कारण बने आइसबर्ग हैं।

तेजी से पिघल रही बर्फ की चादर

अंटार्कटिका महाद्वीप में हर साल 2,000 क्यूबिक किलोमीटर बर्फ की चादर बढ़ती है और बर्फ पिघलने या टूटने से उतनी ही बर्फ समुद्र में बह जाती है। इससे इक्विलिब्रियम (एक समान बैलेंस) बन जाता है। हालांकि, यह रिसर्च बताती है कि अब यह इक्विलिब्रियम बिगड़ने लगा है और तेज गति से बर्फ पिघलने लगी है।

समुद्र गर्म होने से भी हो रहा नुकसान
नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि समुद्र की गर्माहट से अंटार्कटिका की बर्फ घट रही है। यह नीचे से पिघल रही है, जिससे बर्फ की चादर कमजोर और पतली होती जा रही है।

यह स्टडी बताती है कि अंटार्कटिका अब साल 2000 के पहले जैसी स्थिति में वापस नहीं जा पाएगा और अगले 10-20 साल में इसकी बर्फ पिघलने की बड़ी घटनाएं हो सकती हैं।

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