जावेद बोले- लाहौर के लोग मेरी बातों से सहमत थे:फैज के कार्यक्रम में कहा था- मुंबई हमले के आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे

जावेद बोले- लाहौर के लोग मेरी बातों से सहमत थे:फैज के कार्यक्रम में कहा था- मुंबई हमले के आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 

नई दिल्ली।  मशहूर गीतकार और शायर जावेद अख्तर ने लाहौर में खुले मंच से कह दिया कि मुंबई हमले की साजिश रचने वाले पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं। वो आतंकी नॉर्वे या इजिप्ट से नहीं आए थे। इस पर उनकी खूब तारीफ हो रही है। जावेद साहब पाकिस्तान के लाहौर में 17 से 19 फरवरी तक आयोजित 'फैज फेस्टिवल' में पहुंचे थे।

भारत लौटने पर जावेद अख्तर ने अपने बयान को लेकर लाहौर में मिली प्रतिक्रिया पर बात की। जावेद साहब ने एक इंटरव्यू में बताया- हॉल में मौजूद लोग मेरी बातों से सहमत थे और सभी ने इस पर ताली बजाई। कई लोग हैं जो भारत की तारीफ करते हैं। वो भारत से बेहतर संबंध चाहते हैं। हम एक ऐसी दुनिया की बात करते हैं जहां बंटवारा न हो। हमें यह सोचना चाहिए कि पाकिस्तान के लाखों लोग जो हमसे जुड़ना चाहते हैं, उन्हें कैसे जोड़ा जाए।

जावेद अख्तर से पूछा गया कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत होनी चाहिए? इस पर उन्होंने कहा- इस सवाल का जवाब देने की मेरी हैसियत नहीं है। सत्ता में बैठे लोग बेहतर जानते हैं कि क्या हो रहा है और आगे क्या करना चाहिए। पाकिस्तान की फौज, पाकिस्तान की जनता और सरकार की सोच एक जैसी नहीं है, फिर भी जो लोग देश चला रहे हैं वो ही इसे बेहतर जानते हैं। मेरी समझ कम है।

लाहौर में जावेद अख्तर से किए गए सवाल और उनके जवाब जस का तस पढ़ें...

पहला सवाल...
जावेद अख्तर से प्रोग्राम में एक महिला ने पूछा- जावेद साहब! आप कई बार पाकिस्तान आ चुके हैं। वैसे मैं भी आपके घर जा चुकी हूं... क्योंकि 17 जनवरी आपकी और मेरी सालगिरह है और मैंने आपके घर खाना भी खाया है, लेकिन आपको याद नहीं होगा। जावेद बीच में महिला को टोककर पूछते हुए... मेरे घर पर था? लोग हंस पड़ते हैं। फिर महिला बोलती है- चलिए कोई बात नहीं।

महिला आगे पूछती है... आप कई बार पाकिस्तान आ चुके हैं और आप देख चुके हैं कि पाकिस्तान एक माशा अल्लाह बड़ा फ्रेंडली, लविंग और पॉजिटिव मुल्क है...लेकिन हिन्दुस्तान में हमारा जो तसव्वुर है वो इतना अच्छा नहीं है।

मैं ये समझती हूं कि आप जब यहां आते हैं तो क्या आप जाकर बताते हैं कि वो तो बड़े अच्छे लोग हैं। वो जगह-जगह बम नहीं मारते, फूल भी पहनाते हैं और प्यार भी करते हैं। आप ये जाकर उन्हें बताते हैं कि नहीं? क्योंकि इस रीजन में हम चाहते हैं कि अच्छे हालात हों... दोनों मुल्क के लोग एक-दूसरे से मोहब्बत करें और दोस्ती करें।

जावेद अख्तर का जवाब...
आप...आज जो कह रही हैं, उसमें बहुत सच्चाई है, लेकिन ये बहुत दुख की बात है कि लाहौर और अमृतसर शहर का जो सेंटर है उनमें 30 किलोमीटर का डिस्टेंस है। पता नहीं कितने लोग इस बात को जानते हैं। उसके बावजूद इन दोनों शहरों में और पूरे मुल्कों में एक-दूसरे के बारे में जो लाइल्मी (जानकारी का अभाव) है वो हैरतअंगेज है।

आप ऐसा न समझिए कि आप हिन्दुस्तान के बारे में सब जानती हैं। मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि आम हिन्दुस्तानी आपके बारे में सब जानता है। आपमें कैसे-कैसे लोग यहां बैठे हैं उन के बारे में उसे पता है, लेकिन आपको भी नहीं पता... और ये लाइल्मी दोनों तरफ से है। मैं कभी-कभी बड़ा हैरान होता हूं, मैं सुनता हूं जो बात।

मुझे याद है जब मैं पांच बरस पहले जब यहां आया था, तो यहीं बैठा था और कुछ लोग पंजाबी में बात कर रहे थे, कोई हैरत की बात नहीं है...पंजाबी है। तो कोई लतीफा हुआ जिस पर मैं भी हंसा...तो मेरे बराबर में कोई खातिम बैठी थीं। उन्होंने पूछा कि आप पंजाबी समझते हैं? तो मैंने कहा कि जी हां... बोल नहीं पाता, समझ लेता हूं।

उन्होंने पूछा- आपको कैसे समझ आ गई, तो मैंने बताया कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादातर पंजाबी ही हैं। वो बहुत खुश हो गईं और पूछा- आपकी फिल्म इंडस्ट्री में पंजाबी हैं। कौन लोग हैं? तो मैंने बोला कि आप पूछें कि कौन लोग नहीं हैं तो मुझे आसानी हो जाएगी बताने में। उन्होंने कहा-नहीं- नहीं फिर भी...तो मैंने तीन-चार नाम लिए...तो उन्होंने कहा- मगर वो तो हिन्दू हैं।

लाहौर में बैठी एक पढ़ी-लिखी लड़की को ये नहीं मालूम था कि कुछ पंजाबी हिन्दू भी हैं। और यही लाइल्मी उधर भी है। तो ये तो बहुत अफसोस की बात है कि इस तरह के जो कल्चरल एक्सचेंज होने चाहिए थे...स्टूडेंट्स एक्सचेंज होने चाहिए थे वो नहीं हैं... जो कम्युनिकेशन होने चाहिए थे, वो नहीं हैं।

तो जाहिर है कि जो बातें अब जो आदमी कुछ नहीं जानता। मेहदी हसन आए निहायत पॉपुलर हुए थे वहां। नूरजहां बड़ी उनकी एकराम है वो जब आईं। नहीं कह सकते किस तरह का फंक्शन हुआ था उनका वहां। कमेंट्री शबाना ने दी थी, लिखी मैंने थी... और वो हॉल जिस तरह से उन्हें रिसीव किया... लता मंगेशकर, आशा भोसले इस तरह की ग्रेट सिंगर्स ने एहतराम दिया उन्हें।

फैज साहब...फैज साहब आए तो ऐसा लगता था कि किसी स्टेट का हेड आया हुआ है। आगे-पीछे तो गाड़ियां चल रही होती थीं सायरन देते हुए। वो आते थे तो गर्वनर हाउस में ठहरते थे। वहां का कोई टेलीविजन नहीं था, जिसने उन्हें... अब तो आपके यहां प्राइवेट चैनल आ गए हैं। पीटीवी पे तो कोई हिन्दुस्तानी जा नहीं सकता था।

साहिर का... कभी कैफी का सरदार जाफरी का इंटरव्यू देखा है आपने पीटीवी पे? हम आपको दिखाएंगे, हमारे यहां हुआ। तो ये जो बंदिश है...कम्युनिकेशन पे और कहीं ये कोशिश है कि लोग एक-दूसरे को जान न सकें। माफ कीजिएगा... ये दोनों तरफ से है। और शायद थोड़ी आपके यहां ये ज्यादा है। अब हो रही है मुझे खुशी है। तो यहां मैं तकल्लुफ से काम नहीं लूंगा।

'हमने तो नुसरत के बड़े-बड़े फंक्शन किए, मेहदी हसन के बड़े-बड़े फंक्शन किए। लेकिन आपके मुल्क में तो लता मंगेशकर का कोई फंक्शन नहीं हुआ, तो हकीकत ये है... चलिए अब हम एक दूसरे पर इल्जाम ना दें, इससे सॉल्व नहीं होगा। अहम बात ये है आजकल जो इतनी गरम है फिजा​​​​​​, वो कम होनी चाहिए।'

'हम तो बंबई के लोग हैं, हमने देखा हमारे शहर पर कैसे हमला हुआ था। वो लोग नॉर्वे से तो नहीं आए थे, ना इजिप्ट से आए थे। वो लोग अभी भी आपके मुल्क में घूम रहे हैं। तो ये शिकायत अगर हर हिंदुस्तानी के दिल में है तो, आपको बुरा नहीं मानना चाहिए।'

हालांकि जावेद के जवाब के बाद एंकर ने कहा कि हम तो नहीं करवा सके लता जी का फंक्शन, लेकिन आज हमारे पास जावेद अख्तर हैं। इस पर पूरा हॉल और खुद जावेद अख्तर मुस्कुरा दिए।

जावेद अख्तर जब इवेंट में बोल रहे थे तो वहां मौजूद लोगों ने उनसे सवाल भी किए।

जावेद अख्तर जब इवेंट में बोल रहे थे तो वहां मौजूद लोगों ने उनसे सवाल भी किए।

दूसरा सवाल...
एक युवक ने पूछा- जावेद साहब आपने कहा कि दोनों मुल्कों में लाइल्मी है। इसका एक रीजन तो है जो इसकी सबसे बड़ी वजह है। आपको क्या लगता है कि ऐसा क्या काम करना चाहिए कि आज की जो यंगर जेनरेशन है जो सबसे बड़ी स्ट्रेंथ है। उसके अंदर टॉलरेंस का एलीमेंट अंडरस्टैंड कराया जा सके और उन्हें समझाया जा सके ताकि फ्यूचर जेनरेशन के लिए सॉलिड बेस जनरेट की जा सके?

जावेद अख्तर का जवाब...
भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि इस रीजन में अमन हो, दोस्ती हो, ट्रेड हो, कल्चरल एक्सचेंज हो। और वो जितना बन पड़ता है, उतनी कोशिश भी करते हैं। लेकिन अल्टीमेटली बरसरे इक्तिदार लोग (सत्ता में बैठे लोग) होते हैं, ये उनके ही हाथ में होता है। आप सारी कोशिश कर लें वो एक वाकया सारी कोशिशों पर पानी फेर देगा। मेरा मानना है कि दोनों तरफ की अवाम को ये प्रेशर बनाना चाहिए कि चलो जो कुछ भी है ये ठीक होना चाहिए।

आपके टीवी सीरियल्स हिन्दुस्तान में बहुत पॉपुलर थे। मैंने भी कई देखे हैं। कई लोगों से मैं मिलना ही इसलिए चाहता था कि मैंने उनके सीरियल देखे हैं। इतने अच्छे लिखे हुए और इतने अच्छे परफॉर्म किए हुए। तो एक दिन मेरे एक दोस्त फिल्म डायरेक्टर हैं, क्या नाम लूं उनका? वो आए एक पाकिस्तान का टीवी सीरियल देखा था। तो वो बहुत हैरान और खुश थे।

उन्होंने कहा- जावेद साहब पाकिस्तान में भी सड़कें वैसी ही होती हैं, जैसी हमारे यहां होती हैं। तो मैंने कहा- तुम क्या समझते थे कि पाकिस्तान की सड़कें क्या सीधे जन्नत की ओर जाती हैं। ऐसी ही होंगी। तो आप ये देखिए कि ये लाइन भी दोनों तरफ है। मतलब कभी-कभी अफसोस होता है और कभी-कभी हंसी भी आती है।

तीसरा सवाल...
जावेद अख्तर से एक बच्ची ने पूछा कि आपकी सबसे फेवरेट बुक कौन सी है जिसे आपने खुद लिखी है?

जावेद अख्तर का जवाब...
वो मैं लिखने वाला हूं।

इस पर पूरा हॉल हंसी से गूंज उठा।

आप में और शबाना में दोस्ती ज्यादा है या मोहब्बत?
कार्यक्रम के दौरान जावेद अख्तर से सवाल किया गया- आप में और शबाना (जावेद अख्तर की पत्नी) में दोस्ती ज्यादा है या मोहब्बत? इसके जवाब में उन्होंने कहा- वो मोहब्बत-मोहब्बत ही नहीं है जिसमें दोस्ती न हो। और वो दोस्ती और मोहब्बत सच्चे ही नहीं, जिसमें इज्जत न हो। और वो इज्जत झूठी है, जिसमें इख्तियार न दिया जाए।

मैंने तो एक जगह लिखा है कि हमारी दोस्ती ऐसी है कि शादी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ये लफ्ज जो हैं न शौहर, बीवी, पति-पत्नी, हसबैंड-वाइफ हजारों साल पहले पहाड़ों से लुढ़काए गए शब्द हैं, जैसे-जैसे ये नीचे आए, इसमें बहुत काई लिपट गई है। हमें सोचना यह चाहिए कि दो इंसान आखिर खुश कैसे रह सकते हैं?

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