सेम सेक्स मैरिज के खिलाफ केंद्र सरकार: SC में हलफनामा दायर कर कहा-भारतीय परंपराओं के खिलाफ, विवाद होने पर पति और पत्नी का निर्धारण कैसे करेंगे?

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Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है। केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर एफिडेबिट में यह कहा गया है कि समलैंगिक शादियां भारतीय परंपराओं के खिलाफ है। यह समाज में विसंगति पैदा करेगा। भारत में शादियों का कांस्टेप्ट केवल महिला और पुरुष के बीच बंधन ही है। इसमें किसी प्रकार का छेड़छाड़ परंपराओं के अनुरूप नहीं है।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

 सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करने जा रहा है। इसके पहले केंद्र सरकार से हलफनामा दायर करने को कहा था। दरअसल, दिल्ली समेत देश की विभिन्न हाईकोर्ट्स में सेम सेक्स मैरिज को लेकर याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को अपने यहां सुनने का फैसला किया था।

कोर्ट ने बीते 6 जनवरी 2023 को समलैंगिक शादियों से संबंधित सभी याचिकाओं को अपने यहां ट्रांसफर करा ली थीं। सुप्रीम कोर्ट में इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच करेगी।

सरकार ने की याचिका खारिज करने की अपील

केंद्र सरकार ने अपने एफिडेबिट में कहा कि समलैंगिक शादियों के पक्ष में वह नहीं है। सरकार केवल स्त्री व पुरुष के बीच शादियों को मान्यता देने के पक्ष में है। हालांकि,वर्तमान समाज में समलैंगिक शादियों या संबंधों को समाज खुले तौर पर अपनाना शुरू कर दिया है।

इस पर केंद्र सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन वह ऐसी शादियों को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है। कानूनन भी ऐसी शादियों को मान्यता नहीं दिया जा सकता है। क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। कानूनी परिभाषाओं के आधार पर ही दोनों को अधिकार भी मिले हुए हैं। समलैंगिक शादियों के बाद विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को अलग-अलग मानने का आधार कोई नहीं होगा। इससे तमाम विसंगतियां भी पैदा होंगी।

हालांकि, समलैंगिक यौन संबंध अपराध श्रेणी से बाहर

हालांकि, देश में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है। 2018 में आए नए कानून के अनुसार आपसी सहमति से किए गए समलैंगिक यौन संबंध को अपराध नहीं माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय बेंच ने छह सितंबर 2018 को सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए देश में वयस्कों के बीच आपसी सहमति से निजी स्थान पर बनने वाले समलैंगिक या विपरीत लिंग के लोगों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। इस फैसले वाले बेंच में वर्तमान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे।

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