क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट-किन हालातों में किया जाता है? आखिर कैसे काम करती है झूठ पकड़ने वाली मशीन

क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट-किन हालातों में किया जाता है? आखिर कैसे काम करती है झूठ पकड़ने वाली मशीन

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

नई दिल्ली। दिल्ली के श्रद्धा मर्डर केस में आरोपी आफताब अमीन पूनावाला का नार्को टेस्ट से पहले पॉलीग्राफ टेस्ट कराया जाएगा। इस टेस्ट के बाद पुलिस को इस हत्याकांड से जुड़े कई अहम सबूत मिल सकते हैं।

बता दें कि आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के लिए दिल्ली पुलिस ने कोर्ट से इजाजत मांगी है। मंगलवार को कोर्ट से इसकी अनुमति मिल सकती है। आखिर क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट और क्यों इसे नार्को टेस्ट से पहले किया जाता है? आइए जानते हैं।

क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट?

पॉलीग्राफ टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहते हैं। यह एक ऐसा टेस्ट है, जो सच्चाई जानने के लिए किसी भी शख्स की फिजिकल और मेंटल एक्टिविटी को माप लेता है। इस टेस्ट में अपराधी से उस घटना से जुड़े कुछ सवाल  सवाल किए जाते हैं।

जब वो इन सवालों के जवाब देता है तो एक मशीन के जरिए साइकोलॉजिस्ट उसकी पल्स रेट, हार्ट बीट, ब्लड प्रेशर आदि का ग्राफ की मदद से आकलन करते हैं। अगर कोई शख्स झूठ बोलता है तो साइकोलॉजिस्ट उन ग्राफों के जरिए इसे आसानी से समझ लेते हैं। 

कैसे होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?

- पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान शरीर में होने वाले बदलावों से सच-झूठ का पता लगाया जाता है। इसमें शरीर के अलग-अलग अंगों में तार जोड़े जाते हैं, जिन्हें मशीन से कनेक्ट किया जाता है। 

- सबसे पहले आरोपी के सीने पर एक बेल्ट बांधी जाती है, जिसे न्यूमोग्राफ ट्यूब (Pneumograph Tube) कहते हैं। इससे उसकी हार्ट बीट मापी जाती है। 

- इसके अलावा उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स (Lombroso Gloves) बांधे जाते हैं। इसके अलावा बाजुओं पर पल्स कफ (Pulse Cuff) बांधते हैं, जिससे ब्लड प्रेशर मॉनिटर किया जाता है। 

- इसके बाद आरोपी से सवाल पूछा जाता है और वो जो भी जवाब देता है, उस दौरान उसकी हार्ट बीट, पल्स रेट, उंगलियों की मूवमेंट आदि की मॉनिटरिंग स्क्रीन पर की जाती है।

- इसके साथ ही साइकोलॉजिस्ट और पॉलीग्राफ एक्सपर्ट्स उसके हर एक हाव-भाव और शरीर में होने वाले बदलावों को मॉनिटर करते हैं। बाद में इनका विश्लेषण कर सच और झूठ का पता लगाया जाता है।

नार्को टेस्ट से पहले क्यों किया जाता है पॉलीग्राफ टेस्ट?

दरअसल, नार्को टेस्ट थोड़ा रिस्की होता है। उसमें इंसान के शरीर में इंजेक्शन के जरिए कुछ केमिकल दिए जाते हैं। कई बार एनेस्थीसिया के जरिए दी जाने वाली उस केमिकल की मात्रा ज्यादा होने पर इंसान लंबी बेहोशी में चला जाता है। ऐसे में नार्को से पहले पॉलीग्राफ टेस्ट ज्यादा सुरक्षित है। फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) एक्सपर्ट्स के मुताबिक, नार्को टेस्ट से पहले आरोपी की फिजिकल, इमोशनल और साइकोलॉजिकल कंडीशन जानने के लिए भी पॉलीग्राफ टेस्ट कराया जाता है।

नार्को टेस्ट से कैसे और क्यों अलग है पॉलीग्राफ?

पॉलीग्राफ टेस्ट में इंसान के शरीर में किसी भी तरह की दवाएं या इंजेक्शन नहीं दिए जाते। टेस्ट कराने वाला शख्स पूरी तरह होश में रहते हुए हर सवाल का जवाब देता है।

वहीं, नार्को टेस्ट में आरोपी को 'ट्रुथ सीरम' नाम से आने वाली साइकोएक्टिव दवा इंजेक्शन के रूप में दी जाती है, जिसमें सोडियम पेंटोथोल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल जैसी दवाएं होती हैं।

ये दवा खून में पहुंचते ही शख्स अर्धचेतना में चला जाता है। इसके बाद उसकी सोचने-समझने और तर्क करने की क्षमता खत्म हो जाती है, जिससे वो झूठ नहीं बोल पाता। ऐसे में वो स्वाभविक रूप से सच बोलने लगता है।

किसने किया पॉलीग्राफ टेस्ट का आविष्कार?

पॉलीग्राफ टेस्ट को 1921 में बनाया गया। इसका आविष्कार अमेरिका के पुलिस कर्मचारी और फिजियोलॉरिस्ट जॉन ऑगस्टस लार्सन ने की थी। 1924 से पुलिस पूछताछ में लगातार इसका इस्तेमाल होता आ रहा है। 

किन-किन केसों में हुआ पॉलीग्राफ टेस्ट?

2008 में हुए आरुषि हत्याकांड में तलवार दंपति का पॉलीग्राफ टेस्ट हुआ था। इसके अलावा चंडीगढ़ के नेशनल शूटर सिप्पी मर्डर केस में भी कल्याणी का पॉलीग्राफ टेस्ट किया गया था। सुशांत सिंह राजपूत केस में भी रिया चक्रवर्ती का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के लिए कहा गया था।

Share this story