डॉक्टर्स के राज्य अस्पतालों में अनिवार्य प्रैक्टिस शर्त को लेकर सरकार लेने जा रही बड़ा निर्णय...

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ
नई दिल्ली। देशभर के युवा डॉक्टर्स के लिए केंद्र सरकार खुशखबरी देने जा रही है। डॉक्टर्स के लिए बनाए गए सर्विस बांड को खत्म करने की तैयारी चल रही है। नेशनल मेडिकल कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य मंत्रालय इस पर जल्द फैसला ले सकता है।
बांड पॉलिसी खत्म होने के बाद पढ़ाई पूरा करने के बाद उस राज्य या संस्था में निर्धारित अवधि तक प्रैक्टिस करने की अनिवार्य शर्त समाप्त हो जाएगी। इससे नए डॉक्टर्स अपने मनपसंद एरिया में प्रैक्टिस कर सकेंगे।
क्या है बांड नीति?
दरअसल, डॉक्टर्स की बांड पॉलिसी के अनुसार ग्रेजुएशन या पीजी की डिग्री पूरी करने के बाद संबंधित डॉक्टर को राज्य के अस्पतालों या मेडिकल कॉलेज में एक विशिष्ट अविध के लिए अपनी सेवा देनी होती है। अगर डॉक्टर ऐसा करने से मना करता है तो उस पर कठोर आर्थिक दंड लगाया जाता है।
बांड पॉलिसी के अनुसार कई राज्यों में नए डॉक्टर्स जो डिग्री लेकर निकले हैं, उनको गांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर विशेष रूप से सेवा के लिए कहा जाता है।
2.5 करोड़ रुपये तक भरना पड़ता नहीं प्रैक्टिस करने पर...
सरकारी मेडिकल कॉलेजों को मिल रहे सरकारी अनुदान की वजह से डॉक्टर्स से यह बांड भरवाया जाता है। इसलिए वह डिग्री लेने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों में प्रैक्टिस एक तय समय के लिए आवश्यक रूप से करता है। यह आवश्यक सेवा राज्यों में अलग-अलग है।
कहीं 1 साल है तो कहीं पांच साल तक है। इसी तरह अगर बांड का किसी ने उल्लंघन किया यानी वह डिग्री लेने के बाद उस राज्य में प्रैक्टिस नहीं करता है तो उसे बांड की तय राशि का भुगतान राज्य को करना होगा। अलग-अलग राज्यों में यह धनराशि भी अलग-अलग है।
एमबीबीएस के लिए 5 लाख रुपये गोवा, राजस्थान, तमिलनाडु जैसे तमाम राज्यों में है तो उत्तराखंड में एक करोड़ रुपये है। इसी तरह सुपर स्पेशियलिटी या पीजी करने के बाद यह बांड राशि 2 से 2.5 करोडु रुपये है। केरल, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में इतनी कीमत अदा करने होगा अगर प्रैक्टिस नहीं करते हैं वहां अनिवार्य अवधि तक।
सुप्रीम कोर्ट ने बांड पॉलिसी को माना सही
हालांकि, डॉक्टर्स की इस बांड पॉलिसी के खिलाफ तमाम लोगों ने कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2019 में अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में राज्यों की बांड पॉलिसी को बरकरार रखा। लेकिन कई राज्यों में शर्तें काफी कठोर होने पर सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि अनिवार्य सेवा संबंधी एक समान नीति पूरे देश में बनाई जाए।
कमेटी ने की सिफारिश...
सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के प्रधान सलाहकार डॉ.बीडी अथानी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। कमेटी को बांड पॉलिसी को देशभर के लिए एक समान बनाना और संशोधन के लिए सुझाव देना था।
समिति ने मई 2020 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और इसे टिप्पणियों के लिए नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) को भेज दिया गया। एनएमसी ने फरवरी 2021 में रिपोर्ट्स के आधार पर सुझाव दिए।
क्या कहा एमएनसी ने?
नेशनल मेडिकल कमिशन ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में यह कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा डॉक्टर्स बांड पॉलिसी को बरकरार रखने के निर्देश के बाद भी आयोग यह मानता है कि मेडिकल स्टूडेंट्स को किसी भी बंधन के बोझ में नहीं होना चाहिए।
ऐसा करना या यह स्थिति उनको नैसर्गिक न्याय सिद्धांतों से वंचित करता है। ऐसे में उनको किसी भी बांड पॉलिसी के तहत बाध्य कर सेवा नहीं कराना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय अब इस बांड पॉलिसी को खत्म करने में जुटा हुआ है।
माना जा रहा है कि अब बांड पॉलिसी गैर-वित्तीय होगी। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर्स की उपलब्धता के लिए कुछ शर्तों को लागू किया जा सकता है लेकिन वह बहुत कठोर नहीं होगी।