गुप्त काल से ही मनाया जा रहा है महापर्व छठ

Mahaparva chhath Puja

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 

पटना । छठ महापर्व के तीसरे दिन रविवार को अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी पूजा होगी। इसके बाद सोमवार सुबह उदयीमान सूर्य नारायण को अर्घ्य देने के बाद चार दिनों के अनुष्ठान के इस महापर्व का समापन हो जाएगा। गुप्त काल से ही छठ महापर्व का त्योहार मनाया जा रहा है।



पटना स्थित महावीर न्यास के आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि गहन अध्ययन के बाद यह पता चलता है कि गुप्तकालीन जो सिक्के मिले हैं, उनमें षष्ठीदत्त नाम का सिक्का भी मिलता है। पाणिनी ने जो नामकरण की प्रक्रिया बताई है, उसके अनुसार देवदत्त, ब्रह्मदत्त और षष्ठीदत्त इन शब्दों का अर्थ इस प्रकार लगाया जाता है: देवदत्त का मतलब देवता के आशीर्वाद से जन्म होना, ब्रह्मदत्त का मतलब ब्रह्मा के आशीर्वाद से और षष्ठी देवी के आशीर्वाद से जन्मे हुए पुत्र षष्ठीदत हुए।गुप्त काल में षष्ठीदत नाम का प्रचलन था। इससे प्रमाणित होता है कि छठी मैया की पूजा उस समय भी होती थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध इतिहास को वासुदेव शरण अग्रवाल ने अपनी पुस्तक पाणिनिकालीन भारतवर्ष में बताया है।

मिथिला के प्रसिद्ध निबंधकार चंडेश्वर ने 1300 ईस्वी में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कृत्य रत्नाकर में महापर्व छठ का उल्लेख किया है। उसके बाद मिथिला के दूसरे बड़े निबंधकार रूद्रधर ने 15वीं शताब्दी में कृत्य ग्रंथ में चार दिवसीय छठ पर्व का विधान विस्तृत रूप से दिया है। यह वर्णन ऐसा ही है जैसा आज हम लोग छठ पर्व मनाते हैं। इस प्रकार पिछले 700 वर्षों से यह विवरण मिलता है, जिसके अनुसार आज का छठ व्रत मनाया जाता है।1300 ईसवी के पहले चंदेश्वर ने छठ व्रत के ऊपर प्रकाश डाला। 1285 ईसवी में हेमाद्री ने चतुवर्ग चिंतामणि ग्रंथ में और 1130 ईसवी के आसपास लक्ष्मीधर ने कृत्य कल्पतरू में सूर्योपासना एवं षष्ठी व्रत का विधान बताया है। लक्ष्मीधर गहड़वाल वंश के प्रसिद्ध शासक गोविंद चंद्र के प्रमुख मंत्री और सेनापति थे।

उल्लेखनीय है कि छठ व्रत सनातन धर्मावलंबियों का अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस महापर्व पर भगवान भास्कर और छठी मैया की पूजा-अर्चना होती है। सूर्य की उपासना का यह सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। प्रत्येक मास की सप्तमी तिथि विशेषकर शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सूर्य भगवान की तिथि मानी जाती है और इस दिन इनकी उपासना का विधान है। इसके साथ ही कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सबसे पावन तिथि मानी जाती है। इसी कारण सूर्य भगवान की पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष में सप्तमी के दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है।

चार दिनों का यह व्रत नहाए खाए, खरना, अस्तगामी सूरज और उदीयमान सूरज को अर्घ्य देकर उनकी पूजा की जाती है। महावीर मंदिर न्यास के आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि यह तथ्य तो सभी लोगों को पता है, लेकिन छठी मैया की जो पूजा होती है, उसमें छठी मैया कौन देवी हैं, इसका ज्ञान बहुत से लोगों को नहीं है। इसमें मैंने बहुत अनुसंधान किया तो पाया कि छठी मैया वास्तव में स्कंदमाता (पार्वती जी) हैं।

सूर्य भगवान की पूजा वैदिक काल से ही देश में प्रचलित है। सूर्य भगवान के मंदिर इस देश के बाहर भी बहुत सारे स्थानों पर बने हुए थे। जिसमें मुल्तान (पाकिस्तान) का भव्य सूर्य मंदिर भी है, जिसका वर्णन अलबरूनी ने किया है। इस मंदिर को मोहम्मद गजनवी ने तोड़ा था।इसी प्रकार काबुल के पास खैर कन्हेर में सूर्य भगवान का प्रसिद्ध मंदिर था, जिसे मोहम्मद गजनवी ने तोड़ा था। किंतु 1936 में खुदाई हुई तो इसमें बहुत सारे देवताओं की मूर्तियां साबूत पाई गई हैं। इसमें सूर्य भगवान की भव्य मूर्ति है, जो अभी काबुल के म्यूजियम में सुरक्षित है।

यह भी पढ़ें : 10 राज्यों में ठिठुरन भरी सर्दी बढ़ेगी: तापमान 6 से 7 नवंबर के बीच तेजी से गिरेगा

Share this story