बॉलीवुड के अनकहे किस्से: चंदन उर्फ अमीर हैदर का कमाल अमरोही होना...!

Kamal Amrohi

Newspoint24/ अजय कुमार शर्मा
 


उत्तर प्रदेश के अमरोहा के सैयद परिवार में 17 जनवरी, 1918 के दिन एक बच्चा पैदा हुआ। उस का नाम अमीर हैदर रखा गया। घरवाले बच्चे को प्यार से चंदन कहकर पुकारने लगे। चंदन आठ साल का ही हुआ था कि उस के सिर से पिता का साया उठ गया। चंदन की परवरिश उसके चाचा अल्लामा शफीक हसन एलिया की देख-रेख में होने लगी। बिन बाप का बच्चा होने के कारण परिवार के लोग चंदन को कुछ ज्यादा ही लाड़-प्यार करते। उसकी शैतानियां बढ़ती ही चली गईं। चोरी-छिपे सर्कस देखना, मोहल्ले की कामवालियों को परेशान करना और भी बहुत कुछ। एक बार तो उसने एक सफाईकर्मी युवती को पटाखे से जला दिया जिस कारण उस समुदाय के दो-तीन सौ लोग उन्हें मारने -पीटने उनके घर पहुंच गए। चाचा ने किसी तरह माफी मांगकर और पैसे आदि देकर मामला रफा-दफा किया। पानी सिर से ऊपर जाता देखकर उनकी मां और चाचा ने उनके बड़े भाई रजा हैदर को बुलाने का फैसला किया जो उन दिनों सहारनपुर में पुलिस महकमे में थे और चंदन से 18 साल बड़े थे। बड़े भाई की सहमति से उन्हें पढ़ने के लिए उनकी बड़ी बहन खुर्शीद के पास देहरादून भेज दिया गया। लेकिन यहां भी उनकी शरारतें कम नहीं हुईं। एक लड़की को लिखा खत उनके जीजाजी के हाथ लग गया तो उन्होंने अच्छे से फटकार लगा दी। डांट-फटकार से आहत चंदन रात को अपनी बहन की पाजेब चुराकर घर से भाग लिए और ट्रेन से लाहौर जा पहुंचे। पाजेब बेचकर मिले आठ रुपये भी उस अनजान शहर में जल्द ही खत्म हो गए। इसी दौरान वे लाहौर के ओरिएंटल कॉलेज पहुंच गए। यह 1931 के शुरुआती दिन थे। कॉलेज में छात्रों की चहल-पहल देखकर उनका मन भी पढ़ने के लिए हुआ। प्रवेश की उम्मीद में तीन दिन तक वह कालेज के बाहर ही बैठे रहे तो थक हारकर कालेज कैंपस में रहने वाले जर्मन प्रिंसिपल मिस्टर वूलनर और उनकी पत्नी की नजर उन पर पड़ी। उस दंपति ने उन्हें अपने साथ रख कर इस शर्त पर पढ़ाना शुरू किया कि उन्हें कॉलेज टॉप करना होगा ।

तेज दिमाग चंदन ने तीन साढ़े तीन साल में ही उर्दू और फारसी में महारत और मास्टर ऑफ लैंग्वेज की उपाधि हासिल कर ली। जर्मन दंपति अपना कार्यकाल खत्म होने पर उन्हें अपने साथ जर्मनी ले जाना चाहते थे लेकिन चंदन जाने के लिए तैयार नहीं हुआ और अखबारों में लेख और कहानियां लिखकर अपना गुजारा करने लगा। कहानियां और लेख वह अमीर हैदर नाम से लिखा करते थे। इसी बीच उन्हें कोलकाता में एक फिल्म लिखने का काम मिला लेकिन किसी कारणवश फिल्म पूरी नहीं हो पाई । वहीं पीसी बरुआ ने उनको सुझाव दिया कि अगर इस फील्ड में कुछ करना है तो आप को बंबई (अब मुंबई) जाना चाहिए। मुंबई पहुंच कर वह आगा कश्मीरी और ख्वाजा अहमद अब्बास से मिले।

अब्बास के कहने पर हैदर 14 जनवरी, 1938 के दिन हिमांशु राय से मिले और उन्हें "मुसाफिर" के साथ दो-तीन कहानियां सुनाई। हिमांशु राय उनसे बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बॉम्बे टॉकीज में नौकरी मिल गई। लेकिन उनकी कहानी पर फिल्म न बन सकी । तभी किसी ने उन्हें सोहराब मोदी से मिलने की सलाह दी। सोहराब मोदी उस 18 -19 साल के नौजवान को देख कर चौंक गए। उन्होंने मोदी को जेलर की कहानी सुनाई जिस पर जेलर नाम की ही फिल्म बनी और सफल रही। इसके बाद जहांगीर की न्यायप्रियता पर "पुकार" नाम की फिल्म के पटकथा संवाद और गीत लिखने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई । इस फिल्म के गीत और संवाद भी काफी लोकप्रिय हुए।

पुकार बनने के समय ही एक रोचक किस्सा हुआ। सोहराब मोदी संवाद सुनकर ही तय करते थे कि उसे वैसे ही रखना है या बदलना है। एक दृश्य में उन्हें अमीर हैदर का संवाद इतना पंसद आया कि उसे दोबारा सुनाने को कहा। अमीर हैदर ने जब फिर पढ़कर सुनाया तो वह कुछ अलग था। एक बार फिर ऐसा होने पर मोदी ने गुस्से से उनकी कॉपी उनसे छीन ली। मोदी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि उस कॉपी पर कोई संवाद नहीं लिखा था बल्कि धोबी का हिसाब लिखा हुआ था। पटकथा सुनाने के इस अंदाज से मोदी उनसे बहुत प्रभावित हुए और बोल पड़े "तुम तो कमाल के हो मियां ?" आज से तुम्हारा नाम अमीर हैदर "कमाल" होगा। पुकार फिल्म की क्रेडिट में उनका नाम अमीर हैदर "कमाल" ही गया है। लेकिन नाम जरा लंबा था इसलिए बाद में अमीर हैदर निकाल कर कमाल के आगे अमरोही जोड़ दिया गया और फिल्म "महल" से लोग उन्हें कमाल अमरोही के नाम से ही जानने लगे।

चलते चलते

जब अमीर हैदर उर्फ कमाल अमरोही, सोहराब मोदी को जेलर की कहानी सुना रहे थे तब उन्होंने उनसे एक बात कही थी जो एक युवा लेखक के गहरे आत्मविश्वास को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि आप मेरी कहानी सुनने के बाद इस कमरे से बाहर जाएंगे और जब वापस आएंगे, तो वहां से टाइपिंग की आवाज सुनाई पड़ेगी।”



“क्यों?"



“इसलिए कि आप बाहर जाकर टाइपिस्ट से मेरा एग्रीमेंट बनाने के लिए कहेंगे। उसे मेरे सामने रखकर उस पर मुझसे दस्तखत करने को कहेंगे।”



और सचमुच वैसा ही हुआ। कहानी के अंजाम तक पहुंचते-पहुंचते मोदी कमरे से बाहर गए और टाइपिंग की आवाज आने लगीऔर कुछ ही पलों में अमीर हैदर के सामने एग्रीमेंट रख दिया गया था।



(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)

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