एक अच्छी शुरुआत के बाद रन आउट हुई 'शाबाश मितु', तापसी के कंधों पर टिकी है पारी

 

एक अच्छी शुरुआत के बाद रन आउट हुई 'शाबाश मितु', तापसी के कंधों पर टिकी है पारी

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

मुंबई ।  तापसी पन्नू की फिल्म 'शाबाश मितु' थिएटर्स में रिलीज हो चुकी है। यह इंडियन वुमन क्रिकेटर मिताली राज की बायोपिक है। श्रीजित मुखर्जी निर्देशित यह फिल्म पूरी तरह से तापसी के कंधों पर टिकी हुई है। अगर फिल्म देखने का प्लान कर रहे हैं तो यहां जानिए कैसी है यह फिल्म...

कहानी: फर्स्ट हाफ खूबसूरत, सेकंड हाफ बेहद फास्ट
फिल्म 1990 से शुरू होती है जहां भरतनाट्यम की एक क्लास में छोटी मिताली और नूरी की दोस्ती होती है। मिताली जहां नूरी को डांस सीखाती हैं, वहीं नूरी मितु को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित करती है। इसी बीच गली-मोहल्ले में लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती मितु पर कोच संपत (विजय राज) की नजर पड़ती है। वे दोनों को अपने साथ ट्रेनिंग पर रख लेते हैं। जहां नूरी अपने घर पर इस क्रिकेट प्रेम के बारे में नहीं बताती वहीं तापसी के घर पर सबको इस बारे में पता होता है। नेशनल टीम में सिलेक्शन के दौरान नूरी का निकाह हो जाता है और मिताली इंडियन टीम का हिस्सा बन जाती है। इसके बाद फिल्म मिताली की पर्सनल और क्रिकेट लाइफ के स्ट्रगल के बीच सफर करती है। जहां मिताली जेंटलमेन गेम कहे जाने वाले क्रिकेट में वुमंस टीम को बराबर का हक दिलाने के लिए मैनेजमेंट से भिड़ती है। आगे क्या होता है वह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

एक्टिंग : तापसी का क्रिकेट बढ़िया पर एक्सप्रेशंस गड़बड़
फिल्म पूरी तरह से तापसी के कंधों पर सवार है। वे इसे और अच्छे से परफॉर्म कर सकती थीं। क्रिकेट फील्ड में उनके शॉट्स देखकर उनकी मेहनत साफ दिखाई देती है पर कई जगह उनके एक्सप्रेशंस एक जैसे ही नजर आते हैं। ओवरऑल वे टुकड़ों में अच्छी एक्टिंग करती हैं। विजय राज को किसी भी रोल में ढाल दो वो अपनी छाप छोड़ ही जाते हैं और ऐसा ही वे यहां भी कर रहे हैं। बृजेंद्र कालरा समेत बाकी कलाकारों ने भी उनका भरपूर साथ दिया है। छोटी मितु (इनायत वर्मा) और नूरी (कस्तुरी जगनाम), आपको अपनी गजब की परफॉर्मेंस से हैरान कर देंगी।

म्यूजिक: फिल्म में हैं सिर्फ दो ही गानें
वैसे तो अमित त्रिवेदी का म्यूजिक कभी कमजोर नहीं होता पर यहां फिल्म में सिर्फ दो ही गाने हैं और दोनों ही गाने उस लेवल का जोश नहीं भर पाते जितना भरा जा सकता था। बैकग्राउंड स्कोर ठीक-ठाक है।

डायरेक्शन: सेकंड हाफ को संभाल नहीं पाए श्रीजित
डायरेक्टर श्रीजित मुखर्जी ने जिस तरह इस फिल्म की शुरुआत की थी अगर उसी तरह इसका अंत करते तो बेहतर फिल्म बनती, लेकिन वे फिल्म को बेहतर बनाने में कामयाब नहीं हो पाए। एक क्रिकेट बायोपिक में दर्शक जिस चीज का सबसे ज्यादा इंतजार करते हैं वो हैं क्रिकेट सीक्वेंस। फिल्म के वर्ल्ड कप से ज्यादा बेहतर क्रिकेट सीक्वेंस ट्रेनिंग सेशंस में दिखाए गए हैं। श्रीजित ने फिल्म का क्लाइमैक्स इतनी तेजी में पूरा किया जैसे कोई ट्रेन छूट रही हो। फिल्म के पहले हाफ में जहां इमोशंस हैं, मेल और फीमेल क्रिकेटर्स के बीच भेदभाव पर बात की गई है और गुरु-शिष्य के रिश्ते को भी दिखाया गया है। वहीं सेकंड हाफ पूरी तरह से क्रिकेट और मिताली के अचीवमेंट्स पर फोकस्ड है। स्क्रीन पर जरूरत से ज्यादा क्रिकेट मैच दर्शाना भी आपको बोर कर सकता है। अंत में वर्ल्डकप हारने के बाद भी वुमंस क्रिकेट टीम हीरो कैसे बनती है, ये देखकर रोमांच पैदा होता है।

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