शाहनवाज हुसैन के खिलाफ धारा 376/328/120/506 के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश , तीन महीने में करनी होगी पूरी जांच

Order to register FIR against Shahnawaz Hussain under section 376/328/120/506, complete investigation will have to be done in three months

हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन को राहत प्रदान करने से इन्कार कर दिया।

अदालत ने बुधवार को पुलिस को शाहनवाज हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म सहित अन्य धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर तीन माह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है।

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ 
 

नई दिल्ली। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व मंत्री शाहनवाज हुसैन भारी मुसीबत में फंसते नजर आ रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने शाहनवाज हुसैन के खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को कहा है कि वह रेप के इस मामले की जांच 3 महीने में पूरी करे और कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करे । अदालत ने बुधवार को पुलिस को शाहनवाज हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म सहित अन्य धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर तीन माह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। दिल्ली की रहने वाली एक महिला ने चार साल पहले जनवरी 2018 में निचली अदालत में याचिका दायर कर हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज करने का गुजारिश की थी।

हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन को राहत प्रदान करने से इन्कार कर दिया। अदालत ने बुधवार को पुलिस को शाहनवाज हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म सहित अन्य धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर तीन माह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है।


जनवरी 2018 में दिल्ली की महिला ने केस दर्ज कराने के लिए अदालत से लगाई थी गुहार
दिल्ली की रहने वाली महिला ने जनवरी 2018 में निचली अदालत में याचिका दायर कर हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज करने का गुजारिश की थी। महिला ने आरोप लगाया था कि हुसैन ने छतरपुर फार्म हाउस में उसके साथ दुष्कर्म किया व जान से मारने की धमकी दी।

धारा 376/328/120/506 के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश
मजिस्ट्रेटी कोर्ट ने 7 जुलाई को हुसैन के खिलाफ धारा 376/328/120/506 के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा था कि महिला की शिकायत में संज्ञेय अपराध का मामला है। हालांकि पुलिस ने पेश रिपोर्ट में तर्क रखा कि हुसैन के खिलाफ मामला नहीं बनता लेकिन अदालत ने पुलिस के तर्क को खारिज कर दिया था।

हाई कोर्ट की जज न्यायमूर्ति आशा मेनन ने फैसले में कहा कि सभी तथ्यों को देखने से स्पष्ट है कि इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने तक पुलिस की ओर से पूरी तरह से अनिच्छा नजर आ रही है। अदालत ने कहा, पुलिस की ओर से निचली अदालत में पेश रिपोर्ट अंतिम रिपोर्ट नहीं थी जबकि अपराध का संज्ञान लेने के लिए अधिकार प्राप्त मजिस्ट्रेट को अंतिम रिपोर्ट अग्रेषित करने की आवश्यकता है। 

पुलिस अदालत के औपचारिक आदेश के बिना भी संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर जांच के साथ आगे बढ़ सकती है। लेकिन फिर भी एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और इस तरह की जांच के निष्कर्ष पर, पुलिस को धारा 173 सीआरपीसी के तहत एक अंतिम रिपोर्ट जमा करनी होगी। यहां तक कि मजिस्ट्रेट रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है और फिर भी यह निर्धारित कर सकता है कि संज्ञान लेना है या नहीं और मामले को आगे बढ़ाना है। 

अदालत ने हुसैन की अपील को खारिज करते हुए कहा कि यदि मजिस्ट्रेट एफआईआर के बिना क्लोजर रिपोर्ट या धारा 176 (3) सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट के रूप में मानने का इरादा रखते है तब भी उन्हें नोटिस जारी कर अभियोक्ता को विरोध याचिका दायर करने का अधिकार देने सहित मामले से निपटना पड़ता है। 

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