भाजपा ने नए संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का ऐलान किया : शिवराज सिंह चौहान और गडकरी को हटाया, सर्बानंद सोनोवाल और येदियुरप्पा को मिली जगह  

Shivraj Singh Chouhan and Gadkari out of Parliamentary Board and Election Committee

नए संसदीय बोर्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह के अलावा सर्वानंद सोनोवाल, बीएस येदियुरप्पा, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और पार्टी सचिव बीएल संतोष को जगह मिली है।

संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में एक भी सीएम को भी जगह नहीं मिली है। 

Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ 

भाजपा ने नए संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का ऐलान किया : शिवराज सिंह चौहान और गडकरी को हटाया, सर्बानंद सोनोवाल और येदियुरप्पा को मिली जगह  
नई दिल्ली। भाजपा ने बुधवार को नए संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का ऐलान किया है। 11 सदस्यों वाली संसदीय बोर्ड से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को हटा दिया गया है। शिवराज सिंह चौहान को 2013 में बोर्ड में शामिल किया गया था।

नए संसदीय बोर्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह के अलावा सर्वानंद सोनोवाल, बीएस येदियुरप्पा, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और पार्टी सचिव बीएल संतोष को जगह मिली है। संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में एक भी सीएम को भी जगह नहीं मिली है। 

संसदीय बोर्ड सबसे ताकतवर संस्था
भाजपा में पार्टी की संसदीय बोर्ड को सबसे ताकतवर माना जाता है। गठबंधन से लेकर हर बड़े फैसले बोर्ड की 11 सदस्यीय टीम लेती है। इसके अलावा राज्यों में मुख्यमंत्री का चेहरा या विधान परिषद का नेता चुनने का काम भी इसी इकाई का होता है।

पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश के सीएम और विपक्ष का नेता चुनने का काम संसदीय बोर्ड ही करती है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गठबंधन को लेकर भी संसदीय बोर्ड का ही फैसला अंतिम माना जाता है।

चुनाव समिति दूसरी सबसे ताकतवर संस्था
संसदीय बोर्ड के बाद चुनाव समिति बीजेपी में दूसरी सबसे ताकतवर संस्था के तौर पर जानी जाती है। चुनाव समिति के सदस्य लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव के टिकटों पर फैसला लेते हैं। चुनावी मामलों की सभी शक्तियां पार्टी की चुनाव समिति के पास हैं।

2014 लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी केंद्रीय चुनाव समिति ने ही तय किया था। तब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह हुआ करते थे।

भाजपा संसदीय बोर्ड के गठन के मायने
1. नार्थ ईस्ट को पहली बार प्रतिनिधित्व: नार्थ ईस्ट से सर्बानंद सोनोवाल को स्थान मिला है। वह असम के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फिलहाल केंद्र में मंत्री है। नार्थ ईस्ट में उनका प्रभाव भी है। अगले साल नार्थ ईस्ट के कई राज्यों में चुनाव होंगे, जिसका सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा मिलेगा। पहली बार नार्थ ईस्ट से किसी व्यक्ति को संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है।

2. सुधा यादव भरेंगी सुषमा स्वराज की जगह: सुषमा स्वराज के देहांत के बाद भाजपा संसदीय बोर्ड में महिला की कमी खल रही थी। उस कमी को पूरा करने के लिए भाजपा ने हरियाणा से आने वाली सुधा यादव को शामिल किया है। सुधा यादव ओबीसी से आती है। भाजपा का निशाना पूरे देश के ओबीसी पर है।

इसको देखते हुए सुधा यादव को संसदीय बोर्ड में स्थान मिला है। इतना नहीं बल्कि सुधा यादव कारगिल शहीद की पत्नी है। इसके लिए सैनिक परिवारों में भी भाजपा की ओर से एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है। सुधा यादव अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान सांसद रह चुकी है।

3. दलित के जरिए सियासी मैसेज:अगले साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में मध्य प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद सत्य नारायण जटिया को भाजपा ने संसदीय बोर्ड में शामिल करके बड़ा सियासी मैसेज दिया है।

पहले मध्य प्रदेश से संसदीय बोर्ड में दलित चेहरे के तौर पर थावर चंद गहलोत हुआ करते थे, जिन्हें बीजेपी ने राज्यपाल बना दिया। उनके अलावा मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज चौहान थे, लेकिन उन्हें हटाकर भाजपा ने दलित चेहरे को ज्यादा पंसद किया है।

4. अल्पसंख्यक के नाम पर इकबाल: इकबाल सिंह पूर्व IPS हैं, जिन्होंने 2012 में बीजेपी जॉइन की। इसके पहले ये नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी के चेयरमैन भी रहे हैं। ये बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुके हैं। जब पंजाब में आतंकवाद का दौर था तब इकबाल सिंह एक्टिव पुलिस अफसर को रूप में सेवाएं दे रहे थे। इकबाल की बीजेपी के संसदीय बोर्ड में एंट्री से बीजेपी पंजाब के वोटर को खुश करना चाहती है। वहीं देशभर में फैले सिख समुदाय के लिए ये मैसेज देने की कोशिश है।

5. दक्षिण भारत से येदि और लक्षमण: येदियुरप्पा कर्नाटक के सबसे ज्यादा चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। और तीन बार नेता विपक्ष रहे हैं। कर्नाटक के अलावा येदुरप्पा का दक्षिण में अच्छा खासा प्रभाव है। मुख्यमंत्री पद के हटाए जाने के बाद अब येदुरप्पा को संसदीय बोर्ड में लाया गया है। ये उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश लगती है। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण में पैठ बनाने की कोशिश कर रही बीजेपी के लिए येदुरप्पा का चेहरा काम आ सकता है।

डॉ. के. लक्ष्मण फिलहाल बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ये तेलंगाना राज्य से आते हैं और राज्य की इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। बीजेपी तेलंगाना के चंद्रशेखर राव को चुनौती देना चाहती है और इस काम में के लक्ष्मण अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा लक्ष्मण ओबीसी वोट बैंक भी साध सकते हैं।


 
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