राम नाम के 10 अर्थ :  राम सर्वव्यापी हैं 

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Newspoint24/newsdesk/एजेंसी इनपुट के साथ

 

अयोध्या । रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का उत्सव शुरू हो गया है। हिंदू संस्कारों में जन्म से लेकर मृत्यु तक राम का नाम किसी ना किसी तरह जुड़ा हुआ है। राम नाम का अर्थ क्या है? संतों और विद्वानों ने अपने-अपने हिसाब से इसकी व्याख्या की है। जब हमने रिसर्च की तो अलग-अलग जगह से हमें राम नाम के 10 अर्थ मिले। हर अर्थ से ये ही निकलकर आ रहा है कि राम सर्वव्यापी हैं।

राम अवतार क्यों हुआ? दो शाप और दो वरदान

भगवान विष्णु को राम अवतार क्यों लेना पड़ा इसके पीछे श्रीमद्भागतव, वाल्मीकि रामायण, हरिवंशपुराण और रामचरित मानस में अलग-अलग कारण बताए गए हैं। मोटेतौर पर 2 शाप और 2 वरदान हैं जो राम अवतार का कारण बने। जानते हैं वो शाप और वरदान क्या थे।

श्रीमद्भागवत महापुराण के तीसरे अध्याय में कहानी है। सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी ने कई लोकों की रचना करने के लिए तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये भगवान विष्णु के पहले अवतार माने जाते हैं।

पहला शापः जय-विजय को सनकादिक ऋषियों ने दिया था

वैकुंठलोक में भगवान विष्णु के जय-विजय नाम के दो द्वारपाल थे। एक बार सनकादि मुनि उनके दर्शन करने वैकुंठ आए। जब सनकादि मुनि द्वार से निकलकर जाने लगे तो जय-विजय ने हंसी उड़ाते हुए उन्हें रोक लिया। सनकादिक मुनियों को ये बात बुरी लगी।

उन्होंने दोनों को तीन जन्म तक राक्षस योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। क्षमा मांगने पर सनकादि मुनि ने कहा कि तीनों ही जन्म में तुम्हारा अंत स्वयं भगवान श्री हरि करेंगे। तीन जन्म के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। पहले जन्म में जय-विजय ने हिरण्यकश्यपु व हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का तथा नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यपु को मारा। दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण और कुंभकर्ण का जन्म लिया। इनका वध करने के लिए भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। तीसरे जन्म में दोनों शिशुपाल और दंत वक्र के रूप में बने। इस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण ने इनका वध किया।

भगवान राम के अवतार का पहला कारण सनकादि मुनियों का शाप बना।

दूसरा शापः नारद ने भगवान विष्णु को दिया था

रामचरित मानस के बाल कांड में कहानी है। एक बार नारद मुनि हिमालय में जाकर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या कई वर्षों तक चली। इंद्र को लगा कि नारद मुनि अपने तप से इंद्र का पद हासिल कर लेंगे। इंद्र ने कामदेव को आदेश दिया कि नारद मुनि की तपस्या भंग कर दो।

कामदेव वहां पहुंचे जहां नारद तपस्या कर रहे थे। उन्होंने नारद मुनि पर काम बाण चलाए। बाणों के प्रभाव से नारद मुनि की तपस्या टूट गई। उन्होंने आंखें खोली और कामदेव की तरफ देखा। कामदेव को ये लगा कि नारद भी मुझे भगवान शिव की तरह भस्म कर देंगे। उन्होंने नारद से माफी मांगी।

कामदेव ने कहा कि मैंने ये सब हमारे राजा इंद्र के कहने पर किया। आपकी तपस्या भंग करने में मेरा कोई हित नहीं है। मैंने बस राजा की आज्ञा का पालन किया है। कामदेव से ऐसी बात सुन नारद मुस्कुराए और उसे क्षमा कर दिया। माफी मिल गई तो कामदेव ने कहा- मैंने भगवान शिव की तपस्या भंग की थी तो उन्होंने मुझे भस्म कर दिया था। उन्होंने काम को जीत लिया, लेकिन क्रोध से हार गए। आपने तो क्रोध को भी जीतकर मुझे क्षमाकर दिया। आप तो शिव से भी बड़े संन्यासी हो गए।

ये सुन नारद के मन में अहंकार आ गया। वे ये बताने भगवान शिव के पास गए। भगवान शिव ने उनकी बात सुनी और कहा कि ये आपने मुझे बता दिया, लेकिन भगवान विष्णु को भूलकर भी मत बताइएगा। नारद ने उनकी बात अनसुनी कर दी, वे सीधे वैकुंठ लोक गए। यही बात उन्होंने भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु समझ गए कि नारद को अहंकार हो गया है। उनका अहंकार मिटाना होगा।

भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक नगर बसाया। जिसका राजा था शीलनिधि और उसकी बेटी थी विश्वमोहिनी, जिसका स्वयंवर होना था। नारद जब उस नगर में पहुंचे तो विश्वमोहिनी को देखकर ये सोचने लगे कि अब मुझे भी विवाह कर लेना चाहिए। उन्होंने भगवान विष्णु के पास जाकर कहा कि आप अपनी माया से मुझे अपना रूप दे दीजिए ताकि विश्वमोहिनी अपने स्वयंवर में मुझे ही चुन ले।

भगवान विष्णु ने नारद का मुंह बंदर जैसा बना दिया। विष्णु खुद स्वयंवर में पहुंचे और विश्वमोहिनी ने उन्हें अपना वर चुन लिया। नारद पर सब हंस रहे थे। ये देख नारद ने भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि तुमने मुझे स्त्री वियोग दिया, तो तुम भी मानव शरीर धारण कर 14 वर्ष स्त्री वियोग में भटकोगे। मुझे बंदर का मुंह दिया, ये ही बंदर तुम्हारी पत्नी को खोजने में सहायता करेंगे।

नारद का ये शाप भगवान विष्णु ने ग्रहण किया। इस तरह दूसरा शाप राम अवतार का कारण बना। अब बातें दो वरदानों की...

पहला वरदानः विष्णु ने मनु और शतरूपा को दिया

 

श्रीमद् भागवत महापुराण कहता है, सतयुग में मनु और शतरूपा जो ब्रह्मा के ही अंश से जन्मे थे, दोनों ने संतान पाने के लिए भगवान विष्णु की बरसों तक तपस्या की। उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने मनु और शतरूपा से पूछा कि क्या वरदान चाहिए।

दोनों ने कहा कि भगवन, हमें आपके जैसी संतान चाहिए। भगवान विष्णु बोले- मेरे जैसा तो बस मैं खुद हूं, तो मैं खुद ही तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। त्रेतायुग में तुम राजा दशरथ और शतरूपा कौशल्या बनकर जन्मेंगी। मैं तुम्हारे पुत्र राम के रूप में जन्म लूंगा।

इस तरह मनु-शतरूपा को मिला वरदान राम जन्म का कारण बना।

दूसरा वरदानः रावण को भगवान ब्रह्मा ने दिया था

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, भगवान ब्रह्मा के लिए रावण ने कठोर तपस्या की। ब्रह्मा प्रसन्न हुए, रावण से वरदान मांगने को कहा। रावण ने कहा- मुझे अमर होने का वरदान चाहिए। ब्रह्मा जी ने जवाब दिया कि इस संसार में कोई भी अमर नहीं है, जो पैदा हुआ है उसे मरना ही होगा। हां, तुम अपने मरने की परिस्थितियां खुद तय कर सकते हो।

रावण ने कहा- ठीक है, आप मुझे वरदान दीजिए कि मुझे कोई देवता या दानव नहीं मार सके। ना नाग, किन्नर, गंधर्व, यक्ष, गण या कोई देवी भी ना मार सके। मुझे कोई हिंसक पशु भी ना मार सके। ब्रह्मा जी ने उसे ये वरदान दे दिया। रावण ने मनुष्य और वानर ये दो छोड़ दिए, क्योंकि उसे लगा कि जब कोई नहीं मार सकता है तो नर और वानर ये दोनों उसे कैसे मार पाएंगे।

रावण को ब्रह्मा का दिया ये वरदान भी कारण था कि भगवान विष्णु को मानव रूप में राम अवतार लेना पड़ा क्योंकि रावण को कोई साधारण मानव ही मार सकता था।

इस तरह दो शाप और दो वरदान राम अवतार के मुख्य कारण बने।

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