17 मार्च से शुरू होगा होलाष्टक, आठ दिनों में जानें क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य ?

17 मार्च से शुरू होगा होलाष्टक, आठ दिनों में जानें क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य ?

ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी

 

होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक रहते है। यानी होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का समापन होता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। पंचांग के अनुसार, इस साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 16 मार्च को रात 9 बजकर 39 मिनट से होगा, जिसका समापन 17 मार्च को सुबह 9 बजकर 53 मिनट पर होगा। ऐसे में होलाष्टक 17 मार्च से लगेगा और 24 मार्च को समाप्त होगा। इसके बाद 25 मार्च को रंग वाली होली(धुलंडी) मनाई जाएगी।

होलाष्टकों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है। इन दिनों में किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है। होलाष्टक के दौरान विवाह, ग़ृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण और विद्यारंभ आदि सभी मांगलिक कार्य या कोई नवीन कार्य प्रारम्भ करना शास्त्रों के अनुसार उचित नहीं माना गया है। लेकिन इन दिनों को अशुभ मानने के पीछे धर्मग्रंथों में दो कथाएं बताई गई हैं।  

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भक्ति पर हुआ आघात
पौराणिक मान्यता के अनुसार भक्त प्रह्लाद राक्षस कुल में जन्मे थे परन्तु वे भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे।उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए  हिरण्यकश्यप  ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए।मान्यता है कि होली से पहले के आठ दिन यानी अष्टमी से पूर्णिमा तक प्रहलाद को बहुत अधिक यातनाएं दी गई थीं।अंत में होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन प्रह्लाद बच गए और वह खुद जल गई।अष्टमी से पूर्णिमा तक प्रहलाद को जघन्य कष्ट दिए जाने के कारण नवग्रह भी क्रोधित हो गए। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार अब भी अष्टमी से पूर्णिमा तक नवग्रह भी उग्र रूप लिए रहते है ,यही वजह है कि इस अवधि में किए जाने वाले शुभ कार्यों में अमंगल होने की आशंका बनी रहती है। इन दिनों में व्यक्ति के निर्णंय लेने की शक्ति भी कमजोर हो जाती है। इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।

शिव के क्रोध से भस्म हुए कामदेव
एक अन्य कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भोलेनाथ से हो, लेकिन शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। देवताओं के अनुरोध पर कामदेव ने अपना प्रेम का पुष्प वाण चलाकर शिवजी की तपस्या को भंग कर दिया । इससे महादेव अत्यंत क्रोधित हो गए,उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया । प्रेम के देवता कामदेव के भस्म होते ही सारी सृष्टि में शोक व्याप्त हो गया । अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए रति ने अन्य देवी-देवताओं सहित महादेव से प्रार्थना की । प्रसन्न होकर भोले शंकर ने कामदेव को पुर्नजीवन का आशीर्वाद दिया । फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को कामदेव भस्म हुए और आठ दिन बाद महादेव से रति को उनके पुर्नजीवन का आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।इन आठ दिनों में सारी सृष्टि शोक से व्याकुल रही थी। मान्यता है कि तभी से होलाष्टक के इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न नहीं किया जाता है ।

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