भाद्रपद अमावस्या पर तोड़ी जाती है ये पवित्र घास कुश , मांगलिक कार्यों व श्राद्ध आदि कार्यों में होता है उपयोग

भाद्रपद अमावस्या पर तोड़ी जाती है ये पवित्र घास, शुभ कामों में होता है इसका उपयोग

ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी के अनुसार, कुश में त्रिदेवों का वास माना गया है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है।

कुश का मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का निवास माना जाता है।

धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि एक ही कुश का उपयोग अनेक बार किया जा सकता है, ये कभी बासी नहीं होते और इनके दोबारा उपयोग पर कोई दोष भी नहीं लगता।

अथर्ववेद में कुश घास के उपयोग के बारे में बताया गया है कि यह क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होती है। 

Newspoint24/ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी


वाराणसी। हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व माना गया है क्योंकि इस तिथि के स्वामी पितृ देवता हैं। इसीलिए इस दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि किया जाता है। ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी  के अनुसार, इस बार 27 अगस्त को भाद्रपद मास की कुशग्रहणी अमावस्या रहेगी। इस दिन कुश, जो एक प्रकार की पवित्र घास है, इकट्ठा की जाती है। इस घास का उपयोग मांगलिक कार्यों व श्राद्ध आदि में विशेष रूप से किया जाता है।

कुश में है त्रिदेवों का निवास
ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी के अनुसार, कुश में त्रिदेवों का वास माना गया है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। कुश का मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का निवास माना जाता है। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि एक ही कुश का उपयोग अनेक बार किया जा सकता है, ये कभी बासी नहीं होते और इनके दोबारा उपयोग पर कोई दोष भी नहीं लगता। अथर्ववेद में कुश घास के उपयोग के बारे में बताया गया है कि यह क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होती है। 

ऐसे हुई कुश की उत्पत्ति
मत्स्य पुराण में कुश की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। उसके अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया और धरती को समुद्र से निकाला पुन: अपने स्थान पर स्थापित किया तब उन्होंने अपने शरीर पर लगे पानी को झटका, तब उनके शरीर के कुछ बाल पृथ्वी पर आकर गिरे और कुश का रूप धारण कर लिया। तभी से कुश को पवित्र माना जाने लगा। 

इसलिए भी पवित्र है कुश
महाभारत के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने कुछ देर के लिए अमृत कलश को जमीन पर कुश घास पर रख दिया था। कुश पर अमृत कलश रखे जाने से भी इसे बहुत ही पवित्र माना जाने लगा। जब कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण किया तब उन्होंने कुश का ही उपयोग किया था। तभी से यह मान्यता है कि कुश पहनकर जो भी अपने पितरों का श्राद्ध करता है उनसे पितरदेव तृप्त होते हैं। सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ के दौरान कुश के आसन का प्रयोग करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

किस तरह की घास सबसे अच्छी?

  • ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी, जिस घास में पत्ती हो, आगे का भाग कटा हुआ न हो और हरा हो, वो देवताओं और पितरों की पूजा के लिए सबसे अच्छी मानी गई है। 
  • कुशग्रहणी अमावस्या पर सूर्योदय के समय कुश लानी चाहिए। इस वक्त न ला पाएं तो दिन में अभिजित या विजय मुहूर्त में लाएं। सूर्यास्त के बाद घास नहीं तोड़नी चाहिए। 
  • कुशा घास से बना आसन सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है। इस आसन पर बैठकर की गई पूजा से मिलने वाला पुण्य और बढ़ जाता है। 
  •  मांगलिक कामों और पूजा-पाठ में इस घास को मोड़कर अंगुठी की तरह सीधे हाथ की रिंग फिंगर में पहना जाता है। ऐसा करने से पूजा में पवित्रता बनी रहती है।

 

वनस्पति जगत में कुश एक बहुत ही उपयोगी पौधा है। यह प्राय: 3-4 फीट लंबा होता है। यह देव-पितृ कार्य में प्रयुक्त होता है। हिंदुओं के किसी भी धार्मिक कार्य में इसकी अनिवार्यता होती है। वनस्पति तंत्र में वनस्पतियों को लाने की भी विधि है। देवत्व भाव से लाए गये वनस्पति अनुकूल और चौकाने वाले फल देते हैं।

शास्त्र में दस प्रकार के कुशों का विवरण प्राप्त होता है। क्रमश: एक के अभाव में अन्य का प्रयोग करने का विधान है। यथा-

कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराश्च सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौञ्जा दश दर्भा: सबल्वजा।।

भाद्रमास की अमावस्या तिथि कुशोत्पाटनी अमावस्या के नाम से जानी जाती है। इस दिन का समंत्रक लाया हुआ कुश वर्ष पर्यन्त धार्मिक कार्यों में प्रयोग होता है। इसमें पूर्वाह्न व्यापिनी अमावस्या ली जाती है। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन का लाया हुआ कुश केवल उसी दिन तक ग्राह्य माना जाता है।

पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्ते भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।

जिस कुश का मूल सुतीक्ष्ण हो, सात पत्तियों युक्त हो, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव - पितृकार्य दोनों के लिए ग्राह्य है।
प्रात: काल स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर देवत्व भाव से दर्भस्थल पर जाकर निम्न मंत्र पढ़ते हुए दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ना चाहिए -

विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्ति करो भव।।

"हुं फट्"

आवश्यकतानुसार जितना वर्ष भर के लिए संग्रह किया जा सके, लाना चाहिए। वैसे प्रत्येक गृहस्थ को इस दिन समंत्रक कुश संचय अवश्य करना चाहिए। ये कुश वर्ष पर्यन्त काम आ सकते हैं।

कुश का पुष्प शिव को विशेष प्रिय है, कुश की पवित्री सबसे शुद्ध‌ मानी जाती है। कुश के आसन पर बैठकर मंत्रजप से शीघ्र सफलता मिलती है। सूर्य या चंद्रग्रहण काल में खाद्य पदार्थों में इसे डाला जाता है जिससे वे विषाक्त न हों। प्रेतकार्य में मरे हुए व्यक्ति का शव अप्राप्य अवस्था में एवं पंचक में मृत्यु होने पर कुश का ही पुतल बनाकर दाह - संस्कार होता है।किसी भी संकल्प में कुश अनिवार्य होता है।कुश को लाल कपड़े में लपेट कर रखने से समृद्धि आती है। केतु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति कुश से हवन कर लाभान्वित हो सकता है।कुश और गंगाजल के द्वारा शिवाभिषेक से आरोग्य लाभ होता है।
 


यह भी पढ़ें : 27 अगस्त, शनिवार को शनिश्चरी अमावस्या पर 14 साल बाद भादौ में दो शुभ योग, पितृ और शनि दोष से मुक्ति के लिए खास है ये दिन

Share this story