ये है हरतालिका तीज व्रत की कथा, इसे सुने बिना अधूरा माना जाता है ये व्रत

ये है हरतालिका तीज व्रत की कथा, इसे सुने बिना अधूरा माना जाता है ये व्रत
इस बार हरतालिका तीज का व्रत 30 अगस्त, मंगलवार को किया जाएगा। इस दिन सौम्य, शुभ और शुक्ल नाम के 3 योग होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन महिलाएं दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को प्रथम पूजा के बाद ही कुछ खाती हैं। रात में महिलाएं एक स्थान पर एकत्रित होकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और भजन-कीर्तन भी। इस व्रत में शिव-पार्वती से जुड़ी एक विशेष कथा जरूर सुनी जाती है। 

Newspoint24/ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी 

 

 

 

इस बार हरतालिका तीज का व्रत 30 अगस्त, मंगलवार को किया जाएगा। इस दिन सौम्य, शुभ और शुक्ल नाम के 3 योग होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन महिलाएं दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को प्रथम पूजा के बाद ही कुछ खाती हैं। रात में महिलाएं एक स्थान पर एकत्रित होकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और भजन-कीर्तन भी। इस व्रत में शिव-पार्वती से जुड़ी एक विशेष कथा जरूर सुनी जाती है। इस कथा को सुने बगैर व्रत अधूरा माना जाता है। आगे जानिए इस व्रत से जुड़ी कथा के बारे में…  

जब सती ने किया आत्मदाह
धर्म ग्रंथों के अनुसार, दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक बार जब दक्ष ने यज्ञ का आयोजन नहीं किया तो उसमें शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन फिर भी देवी सती बिना निमंत्रण के उस यज्ञ में पहुंच गई। जब उन्होंने वहां अपने पति का अपमान होते देखा तो यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इस घटना से शिवजी को बहुत शोक हुआ और वे योगनिद्रा में चले गए। 

सती ने लिया पार्वती के रूप में जन्म
अगले जन्म में देवी सती ने हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी वे भगवान शिव को ही पति रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए वे दिन रात शिवजी का ही ध्यान करने लगी और तपस्या करने लगी। अपनी पुत्री को इस हालत में देख राजा हिमालय को चिंता होने लगी। उन्होंने देवी पार्वती का ध्यान भगवान शिव की ओर से हटाने के लिए कई प्रयास किए लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। 

जब सखियों ने किया देवी पार्वती का हरण
पार्वतीजी के मन की बात जानकर एक दिन उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा। जंगल में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की तपस्या करने लगी। देवी पार्वती की ये कठोर तपस्या 12 साल तक चली। तब शिवजी ने उन्हें दर्शन दिए और अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।


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