सावन के अंतिम सोमवार 8 अगस्त को पुत्रदा एकादशी इस दिन रवि और पद्म नाम के 2 शुभ योग भी जानिए इस दिन से जुड़ी खास बातें

पंचांग के अनुसार, श्रावण शुक्ल एकादशी तिथि 07 अगस्त की सुबह 11.50 से शुरू होकर 08 अगस्त की रात 09 बजे तक रहेगी।
एकादशी तिथि का उदय काल 8 अगस्त को रहेगा, इसलिए इसी दिन एकादशी व्रत करना श्रेष्ठ रहेगा।
8 अगस्त को रवि योग सुबह 05.46 से दोपहर 02.37 तक रहेगा।
वहीं इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र होने से पद्म नाम शुभ योग बनेगा, यह भी दोपहर 02.37 तक रहेगा।
Newspoint24/ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी
वाराणसी। सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। कुछ ग्रंथों में इसे पवित्र एकादशी भी कहा गया है। इस बार ये एकादशी 8 अगस्त, सोमवार को है। ये सावन का अंतिम सोमवार भी रहेगा। इस दिन रवि और पद्म नाम के 2 शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ गया है। मान्यता है किस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। आगे जानिए इस एकादशी के से जुड़ी खास बातें…
पुत्रदा एकादशी के शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, श्रावण शुक्ल एकादशी तिथि 07 अगस्त की सुबह 11.50 से शुरू होकर 08 अगस्त की रात 09 बजे तक रहेगी। एकादशी तिथि का उदय काल 8 अगस्त को रहेगा, इसलिए इसी दिन एकादशी व्रत करना श्रेष्ठ रहेगा। 8 अगस्त को रवि योग सुबह 05.46 से दोपहर 02.37 तक रहेगा। वहीं इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र होने से पद्म नाम शुभ योग बनेगा, यह भी दोपहर 02.37 तक रहेगा।
पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि
8 अगस्त की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद घर में किसी साफ-सुथरे स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। सबसे पहले शंख में जल प्रतिमा का अभिषेक करें। विष्णु प्रतिमा को चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद एक-एक करके चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि चीजें चढ़ाएं। गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र अर्पित करें। बाद में मौसमी फल और गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। दिन भर कुछ खाएं नहीं। रात को मूर्ति के पास बैठकर भजन-कीर्तन करें। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद ही स्वयं पारणा करें। इस तरह व्रत और पूजा करने से योग्य संतान की कामना पूरी होती है।
ये है पुत्रदा एकादशी की कथा
किसी समय सुकेतुमान नाम के एक राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक बार इसी बात पर विचलित होकर वे जंगल में चले गए। वहां उन्हें एक ऋषि मिले। राजा ने उन्हें अपनी समस्या बताई। ऋषि ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा ने ये व्रत पूरी भक्ति और निष्ठा से किया, जिसके फलस्वरूप उनके यहां पुत्र का जन्म हुआ।