पितरों के श्राद्ध और तर्पण का महापर्व पितृ पक्ष 10 सितंबर से, इस बार 16 दिन का रहेगा  

 पितरों के श्राद्ध और तर्पण का महापर्व पितृ पक्ष , इस बार 16 दिन का रहेगा

Newspoint24/ ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी

10 सितंबर को भाद्रपद मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इस दिन से 25 सितंबर तक रोज पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि काम किए जाएंगे। 11 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है। पूर्णिमा तिथि के श्राद्ध भादौ पूर्णिमा पर किए जा सकते हैं।

सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का बहुत अधिक महत्व है। पितृ पक्ष के 15 दिनों में पितरों की पूजा, तर्पण और पिंडदान करने से पितृ देव प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण या पिंडदान करने की परंपरा निभाई जाती है।

शास्त्रों में कहा जाता है कि पृथ्वी पर जीवित व्यक्तियों को किसी भी शुभ कार्य या पूजा करने से पहले अपने पूर्वजों की पूजा जरूर करनी चाहिए। मान्यता है अगर पितृगण प्रसन्न रहते है तभी भगवान भी प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका उसके परिवार के सदस्यों द्वारा श्राद्ध कर्म करना बहुत ही जरूरी होता है।  अगर विधि-विधान से मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों का तर्पण या पिंडदान न किया जाये तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। पितृगण की पिंडदान न करने पर उसकी आत्मा मृत्यु लोक में भटकती रहती है।

आत्मा शांति के लिए पिंड दान और तर्पण की है परंपरा
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के दौरान पितर देवों को तर्पण, श्राद्ध और उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। हिंदू कैलंडर के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक पितृ पक्ष रहता है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण या पिंडदान करने की परंपरा निभाई जाती है।

शनिवार से शुरू हो रहा पितृ पक्ष
इस बार पितृपक्ष 10 सितंबर,शनिवार से 25 सितंबर 2022 तक रहेगा। हिंदू पुराणों में पितृपक्ष का महत्व और इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। पं. अजय कुमार तैलंग ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृपक्ष के दिनों में पितरों की पूजा, तर्पण और पिंडदान करने से पितर देव प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। हिंदू धर्म में पितरों के लिए 16 दिन विशेष होते हैं।

भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक पितरों का तर्पण देने और उनकी की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष रखे गए हैं। पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने पर पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।

 पितरों के श्राद्ध और तर्पण का महापर्व पितृ पक्ष 10 सितंबर से  , इस बार 16 दिन का रहेगा

 

पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को बताया था कैसे शुरू हुए श्राद्ध कर्म
महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं। इन संवादों में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध कर्म की शुरुआत कैसे हुई? भीष्म पितामह ने बताया था कि प्राचीन समय में सबसे पहले महर्षि निमि को अत्रि मुनि ने श्राद्ध का ज्ञान दिया था। इसके बाद निमि ऋषि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध कर्म शुरू कर दिए। इसके बाद श्राद्ध कर्म करने की परंपरा प्रचलित हो गई।

शुभ कार्य करने से पहले करनी चाहिए पूर्वजों की पूजा
शास्त्रों में कहा जाता है कि पृथ्वी पर जीवित व्यक्तियों को किसी भी शुभ कार्य या पूजा करने से पहले अपने पूर्वजों की पूजा जरूर करनी चाहिए। मान्यता है अगर पितृगण प्रसन्न रहते है तभी भगवान भी प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका उसके परिवार के सदस्यों द्वारा श्राद्ध कर्म करना बहुत ही जरूरी होता है।

अगर विधि-विधान से मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों का तर्पण या पिंडदान न किया जाये तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। पितृगण की पिंडदान न करने पर उसकी आत्मा मृत्यु लोक में भटकती रहती है।

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किस तिथि पर करें मृत्यु तिथि न पता होने पर श्राद्ध
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की शांति के लिए श्राद्ध किया जा जाता है, लेकिन पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने और गया में पिंडदान करने का अलग ही महत्व होता है। पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करना चाहिए।

अगर किसी परिजन की मृत्यु की सही तारीख पता नहीं है तो आश्विन अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है। पिता की मृत्यु होने पर अष्टमी तिथि और माता की मृत्यु होने पर नवमी तिथि तय की गई है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी दुर्घटना में हुई तो उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए।

श्राद्ध करने का पहला अधिकार पुत्र को
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार पुत्र ही माता पिता को पूं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है इसलिए उसे पुत्र कहते हैं। माता पिता की मृत्यु के बाद पुत्र ही पिंड दान, तर्पण,श्राद्ध आदि करता है। जिसके कारण मृतक की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। एक से ज्यादा बेटे होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। अगर सबसे बड़े बेटे की मृत्यु हो गई हो तो छोटे बेटे को श्राद्ध करने का अधिकार है। यानी घर में जो भी बड़ा भाई हो उसे ही श्राद्ध करना चाहिए।

 सर्व पितृ अमावस्या, महालय श्राद्ध किया जायेगा। अगर कोई श्राद्ध छूट जाये तो अमावस्या को श्राद्ध कर सकते हैं ।

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