इंदिरा एकादशी पर व्रत और पूजा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है , जानें कब है इंदिरा एकादशी के शुभ मुहूर्त 

इंदिरा एकादशी पर व्रत और पूजा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है , जानें कब है इंदिरा एकादशी के शुभ मुहूर्त

Newspoint24/ज्योतिषाचार्य प. बेचन त्रिपाठी दुर्गा मंदिर , दुर्गा कुंड ,वाराणसी  


वाराणसी। इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहा है, जो 25 सितंबर, रविवार तक रहेगा। इसके पहले 21 सितंबर, बुधवार को श्राद्ध पक्ष की एकादशी तिथि का संयोग बन रहा है। श्राद्ध पक्ष में आने वाली इस एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी पर व्रत और पूजा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत में दान का भी विशेष महत्व है। 

साल में एक बार ही आती है ये एकादशी
पूरे साल में सिर्फ एक बार ही श्राद्ध पक्ष के दौरान एकादशी का संयोग बनता है, जिसके चलते इस एकादशी का विशेष महत्व है। पितर अपने वंशजों से आशा करते हैं कि वे इस एकादशी पर व्रत-पूजा करें ताकि उसके शुभ फल उन्हें मिल सके और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो। ग्रंथों के अनुसार इंदिरा एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को पूर्वज के नाम पर दान कर दिया जाए तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और व्रत करने वाले को बैकुण्ठ प्राप्ति होती है। 

दान का विशेष महत्व
पद्म पुराण के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत के साथ-साथ दान का भी विशेष महत्व है। ग्रंथों के अनुसार, जितना पुण्य कन्यादान और हजारों वर्षों की तपस्या से मिलता है, उतना पुण्य इंदिरा एकादशी पर दान करने से प्राप्त हो जाता है। इस दिन घी, दूध, दही और अन्न दान करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होते हैं और धन लाभ के योग भी बनते हैं।

श्राद्ध भी जरूर करें
इंदिरा एकादशी पर पितरों के श्राद्ध का विशेष महत्व है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, इस एकादशी का महत्व शेष सभी एकादशियों से श्रेष्ठ है, इसलिए इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध जरूर करना चाहिए। श्राद्ध कर्म दोपहर में करना चाहिए। अगर विधि-विधान से श्राद्ध न कर पाएं तो जलते हुए कंडे पर गुड़-घी, खीर-पुड़ी अर्पित करके धूप दे सकते हैं। अगर ये भी संभव न हो तो जरूरतमंद लोगों को भोजन कराना चाहिए। 

इंदिरा एकादशी के शुभ मुहूर्त  
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 20 सितंबर, मंगलवार की रात 09:26 से शुरू होकर 21 सितंबर, बुधवार की रात 11:34 तक रहेगी। एकादशी तिथि का सूर्योदय 21 सितंबर को होने से इसी दिन इंदिरा एकादशी का व्रत किया जाएगा। इस दिन पुष्य नक्षत्र होने से मातंग नाम का शुभ योग पूरे दिन रहेगा। इसके अलावा परिघ और शिव नाम के 2 अन्य शुभ योग भी इस दिन बन रहे हैं। व्रत का पारण 22 सितंबर, गुरुवार को सुबह 06.09 से 08.35 के बीच होगा।

इस विधि से करें इंदिरा एकादशी व्रत  


- धर्म ग्रंथों के अनुसार, एकादशी तिथि से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि (20 सितंबर, मंगलवार) को संयम पूर्वक व्यवहार करें। एकादशी तिथि की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें।

- इस व्रत में भगवान शालिग्राम की पूजा करने का विधान है। सबसे पहले एक साफ स्थान पर चौकी लगाकर भगवान शालिग्राम को स्थापित करें। शालिग्राम को को चंदन का तिलक लगाएं। शुद्ध घी का दीपक जलाएं।

- एक-एक करके सभी पूजन सामग्री भगवान शालिग्राम को चढ़ाते रहें। इनमें अबीर, गुलाल, चंदन, मौली, जनेऊ, फूल, माला, सुपारी, नारियल, इत्र, तुलसी के पत्ते आदि शामिल होनी चाहिए।

- इसके बाद अपनी इच्छा अनुसार, भगवान शालिग्राम को भोग लगाएं। संभव को हो तो गाय के दूध से बनी खीर का अवश्य चढ़ाएं। इसके बाद भगवान की आरती करें और प्रसाद सभी भक्तों में बांट दें।

- रात को पूजन स्थान पर बैठकर भजन करते रहें। अगले दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद स्वयं कुछ खाएं। इस तरह इंदिरा एकादशी का व्रत करने से आपकी हर कामना जल्दी पूरी हो सकती है। 

पुराणों के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, वहीं व्रती (व्रत करने वाला) को भी मनचाही सफलता मिलने के योग बनते हैं। इस व्रत का पूरा फल तभी मिलता है, जब इसकी कथा सुनी जाए। आगे जानिए इंदिरा एकादशी व्रत से जुड़ी कथा…

ये है इंदिरा एकादशी व्रत की कथा  
 पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नाम का एक नगर था, जिसका राजा इंद्रसेन था। राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु का परम भक्त था। एक दिन नारद मुनि राजा इंद्रसेन की सभा में आए। राजा ने उन्हें उचित मान-सम्मान देकर सिंहासन पर बैठाया। इसके बाद नारदजी ने बताया कि वे राजा इंद्रसेन के पिता का संदेश लेकर आए हैं। राजा इंद्रसेन के पिता ने कहा था कि पूर्व जन्म में किसी भूल के कारण वह यमलोक में ही हैं। यमलोक से मु्क्ति से के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत करना होगा, तभी उन्हें मोक्ष मिलेगा। राजा इंद्रसेन ने नारदजी से इंदिरा एकादशी के बारे में पूछा। नारदजी ने बताया कि “ये एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पड़ती है। इस व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही करना होता है। एकादशी व्रत के बाद द्वादशी तिथि पर व्रत का पारणा भी आवश्यक है। तभी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है। इस तरह इंदिरा एकादशी के बारे में संपूर्ण जानकारी देकर नारदजी लौट गए। जब आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी आई तो राजा ने पूरे विधि-विधान से परिवार सहित इंदिरा एकादशी का व्रत किया। उसके पुण्य फल से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति हुई। 


 

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