गुरु नानक ने करतारपुर साहिब में बिताए थे 18 साल , जीवन के अंत तक यहीं रहे
 

Guru Nanak spent 18 years in Kartarpur Sahib, stayed here till the end of his life.

डॉ. मनजीत ने कहा, “ एक बार कुछ लोगों ने गुरु नानक देव से पूछा कि

हमें यह बताइए कि आपके अनुसार हिंदू बड़ा है या मुसलमान

तो गुरु साहिब ने उत्तर दिया, ‘ पुरछन फोल किताब नूं हिंद वडा कि मुसलमनोई।

Newspoint24/ संवाददाता /एजेंसी इनपुट के साथ 

 

नयी दिल्ली। दुनिया को भाईचारे और मानवता का असल मतलब समझाने में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव ने जीवन के आखिरी 18 वर्ष करतारपुर साहिब में बिताये थे।

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रावी नदी के पास स्थित तलवंडी गांव, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है, में 1469 ईस्वी में जन्मे गुरु नानक ने मानवता की भलाई में हर तरह का योगदान दिया।

गुरु नानक के जीवनवृत्त पर शोध करने वाली डॉ. मनजीत कौर ने बताया कि उनका बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता था। वह शुरू से ही अध्यात्म और ईश्वर की प्राप्ति में रुचि रखते थे। एक दिन उनके पिता कल्याणचंद (मेहता कालू) ने उन्हें पढ़ाई के लिए पंडित जी के पास भेजा तो उन्होंने उनसे ओम लिखने के लिए कहा, लेकिन नानक देव ने ओम के आगे अंकों में एक लिख दिया, जिसके पीछे उनका भाव यह बताना था कि ईश्वर एक है।

डॉ. मनजीत ने कहा, “ एक बार कुछ लोगों ने गुरु नानक देव से पूछा कि हमें यह बताइए कि आपके अनुसार हिंदू बड़ा है या मुसलमान तो गुरु साहिब ने उत्तर दिया, ‘ पुरछन फोल किताब नूं हिंद वडा कि मुसलमनोई। बाबा आखे हाजिआं शुभ अमला बाझो दोनों रोई। यानी अच्छे कर्माें के बिना दोनों का जीवन व्यर्थ है। कोई हिंदू और मुसलमान नहीं है, सभी एक परमात्मा की संतान हैं। ”

डॉ. मनजीत ने बताया कि गुरु नानक देव जी का करतारपुर साहिब से काफी जुड़ाव रहा। 1521 ईस्वी में गुरु नानक देव अपनी धार्मिक यात्राओं को खत्म कर करतारपुर में बस गए और जीवन के अंत तक वहीं रहे। इस दौरान उन्होंने मानवता को ‘नाम जपो’ यानी ईश्वर का नाम जपते रहने, ‘किरत करने’ यानी ईमानदारी से मेहनत कर आजीविका कमाने और ‘वंड छको’ यानी अपने पास मौजूद हर वस्तु/सामग्री को साझा करने के तीन मूल मंत्र दिए, जिसका आज न केवल सिख समुदाय, बल्कि दुनिया का हर धर्म अनुसरण करता है।

डॉ मनजीत ने कहा कि गुरु नानक ने न केवल शिक्षाएं दीं, बल्कि स्वयं भी इसका पालन किया। उन्होंने करतारपुर साहिब में बिताए अपने जीवन के आखिरी 18 वर्षाें में खेतों में हल चला कर यह बताया कि हर इंसान को अपने जीवन में मेहनत करनी चाहिए। इसी तरह उन्होंने अपनी दिनचर्या में अकाल पुरख, प्रभु परमात्मा को हर समय अपने आसपास माना और उसका स्मरण किया। तीसरे सिद्धांत में उन्होंने हर चीज को साझा करना सिखाया, चाहे वह धन हो या भोजन।

करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए सिखों का जत्था पाकिस्तान पहले ही पहुंच चुका है। वहां प्रमुख आयोजन 19 नवंबर को प्रकाश पर्व पर होगा।

Share this story